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________________ तुलसी-शब्द-कोश 91 उतरअयन : सं०० (सं० उत्तरायण) । मकर रेखा (राशि) से कर्क रेखा (राशि) पर्यन्त सूर्य गति के छः मास का समय । गी० १.५१.३ उतरत : वकृ० पु । उतरना, नीचे आता। 'चढ़त दसा यह उतरत जात निदान ।' बर० ५ उतरन : भकृ० अव्यय । उतरने, पार जाने । 'जिअत न सुरसि उतरन देऊ ।' मा० २.१६०.२ उतरहि : आ०प्रव० । उतरते हैं, पार जाते हैं। 'उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।' मा० २.१०१.२ उतराई : सं० स्त्री० । पार ले जाने का पारिश्रमिक । 'कहेउ कृपालु लेहु उतराई।" मा० २.१०२.४ उतरि : पूक । उतरकर । (१) नीचे आकर । 'उतरि तुरग तें कीन्ह प्रनामा ।' मा० १.१५८८ (२) पार जाकर । 'सुरसरि उतरि निवास प्रयागा।' मा० ७६५३ उतरिबो : भक० पु. कए । उतरना, उतरना (चाहिये, होगा)। गी० ५.१४.२ उतरिहि : आ०-भ०-प्रए० । उतरेगा। 'उतरिहि कटकु. न मोरि बड़ाई।' मा० ५.५६.७ उतरी : भू०कृ० स्त्री० । (१) उतर पड़ी (अभियान करके आ गई) । 'मनहुं करुन रस कटकई उतरी अवध बजाइ ।' मा० २.४६ (२) पार हुई। 'सेन जिमि उतरी सागर पार ।' मा० ६.६७ क उतरु : उतर+कए० । (१) कोई-सा भी उत्तर । 'जाइ उतरु अब देहउ काहा।' मा० १.५४.२ (२) एक भी उत्तर । 'आली अति अनुचित, उतरु न दीजै ।' कृ०४५ उतरे : भू०० पु० (सं० उत्तीर्ण>प्रा० उत्तरिअ) । (१) पार हुए। सेन सहित उतरे रघुबीरा ।' मा० ६.५.२ (२) आकर रुके । 'उतरे जहँ तह बिपुल महीपा ।' मा० १.२१४.४ (३) अवरोहण किया, नीचे आये। "उतरे राम देवसरि देखी।' मा० २.८७.२ उतरेउ : भू.कृ.पु०कए० । (१) पड़ाव डाला । 'जल-थल तकि तकि उतरेउ लोग।' __मा० २ २४५.८ (२) पार किया। मा० ६.६ ५ उतर : उतरइ । मा० ५ ५६ उतर यो : उतरेउ । मा० ६.४६ उतहि : उधर, उधर ही । गी० १.१०५.४ उताइल : वि० (सं० उत्तावत्>प्रा० उत्ताइल) । (१) त्वरित, शीघ्रगतिक (जैसे तची भूमि पर पैर पड़ रहे हों) । 'तब पथ परत उताइल पाऊ।' मा०२.२३४ ६ (२) क्रि०वि० । हड़बड़ी में । 'चला उताइल ।' मा० ३.२६.२३
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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