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तुलसी शब्द-कोश
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ना० ६.५४
उठावौं : आउए । उठाता हूँ, उठा सकता हूँ। 'कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं ।'
मा० १.२५३.४ उठि : पू० । उठकर । मा० १.१७१.१ उठिहौं : आ०भ उए । उलूंगा । 'उठिहौं न जनम भरि ।' विन० २६७ उठी : भू०० स्त्री० बहु० । मा० १.३५२.२ उठी : भू०० स्त्री० । मा० २.२६ उठे : भू०कृ० पुं० बहु० । 'उठे लखनु ।' मा० १.२२६ उठेउ : भू०कृ० पु. कए । उठा । जग गया। 'उठेउ गवहिं जेहिं जान न रानी।'
मा० १.१७२.३ उठे : आ०प्रब० । उठते-ती-हैं । 'प्रेम बिबस उठ गाइ के।' गी० १.७०.२ उठ : उठइ । उठे, उठ सके । उठ सकते हैं, उठता है । 'जगदाधार सेष किमि उठे।'
मा० ६.५४ उठौ : उठहु । उठो । 'प्रात भयो......उठो प्रानप्यारे ।' गी० १.३७.१ उठ्यो : उठेउ । कवि० ५.६ Vउड़, उड़द : (सं० उड्डीयते>प्रा० उड्डइ-उड़ना) आ०प्रए । उड़ता है । 'उड़इ
अबीर मनहुं अरुनारी ।' मा० १.१६५.५ उड़गन : उङ गन । मा० १.३२.१२ उड़त : वक० पु० । उड़ता, उड़ते । 'नभ उड़त बहु भुज मुड ।' मा० ३.२० छं० १ उड़न : भक० अध्यय । उड़ते को। 'मन हुं उड़न चाहत अति चंचल ।' कृ० २२ /उड़ा, उड़ाइ, ई : उड़ । उड़ता है, उड़ती है । 'ऊपर धूरि उड़ाइ।' मा० ६ ५३ ____ 'मसक फंक मेरु उड़ाई।' मा० २.२३२.३ उड़ाइ : पूक० । उड़कर । 'बैठहिं गीध उड़ाइ सिरन्ह पर।' मा० ६.८६.१ उड़ाई : (१) उड़ाइ-दे० /उड़ा । (२) उड़ाइ। उड़ कर । 'गगन गए रबि निकट
उड़ाई।' मा० ४.२८.२ (६) भू.कृ. स्त्री० । उड़ा दी । हनु० ३५ उड़ाउँ : आ० उए । उड़ता हूं (था) । 'तहें तहँ संग उड़ाउँ ।' मा० ७.७५ उड़ात : उड़त । उड़ता-उड़ते । मा० ७.२८.४ उड़ाना : (१) उड़न । उड़ना । 'बिनु पंखन्ह हम चहहिं उड़ाना।' मा० १.७८.६
(२) भू००० । उड़ा । 'गहिसि पूंछ कपि सहित उड़ाना ।' मा० ६.६५.५ उड़ानी : भू० कृ० स्त्री० । उड़ी । 'कछु कटु चाह उड़ानी।' कृ० ४७ उड़ाने : उड़ाना । उड़ने को । 'जन चहत उड़ाने ।' मा० १.२६८.६ /उड़ाव, उड़ावइ : (/उड़+प्रेरणा-सं० उड्डागयति>प्रा० उड्डावइ) आ०
प्रए । उड़ाता है । 'मरुत उड़ाव प्रथम तेहि भरई ।' मा० ७.१०६.१२