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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Maa.beo...MRA00000.00AMAce सोमसेनकृत वैवर्णिकाचार, अध्याय पांचवा. पान २४८. BB0000Naree.me.vecommonMAGE भूमिसम्मार्जनम् ।। अर्थ-ॐहाँ वायकुमाराय" इत्यादि मंत्राने भूमीचे संमार्जन करावे. ॐ हीं मेघमाराय धरां प्रक्षालय प्रक्षालय अंहंसतं पं स्वं झं झं यं क्षः फट स्वाहा ॥ भूमिसेचनम् ॥ अर्थ- ॐ हाँ मेघमाराय' इत्यादि मंत्राने भूमीवर सडा घालावा. ॐ हीं अग्निकुमाराय हम्ल्यूं ज्वल उपल तेजःपतये अमिततेजसे स्वाहा ॥ दर्भाग्निप्रज्वालनम् ॥ अर्थ- 'ॐ ही अग्निकुमाराय' इत्यादि मंत्राने दर्भ त्या भूमीवर पेटवावेत. ॐही कौं षष्टिसहस्रसंख्येभ्यो नागेभ्यः स्वाहा । नागतर्पणम् ।। अर्थ-- 'ॐ हाँ क्रौँ ' इत्यादि मंत्राने नागांची पूजा करावी. ॐ ही भूमिदेवने इदं जलादिकमर्चनं गृहाण गृहाण स्वाहा । भूम्यर्चनम् ॥ अर्थ-- 'ॐ ही भूमिदेवते' इत्यादि मंत्राने भमीचे पूजन करावें. ॐ हीं अई क्षं वं श्रीपीठस्थापनं कशेमि स्वाहा ॥ होमकुण्डात्प्रत्यक् पीठस्थापनम् ॥ अर्थ-- 'ॐ हाँ अहं' इत्यादि मंत्राने होमकुंडाच्या पश्चिमेकडे पीठस्थापन करावें. For Private And Personal Use Only
SR No.020835
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen
PublisherRajubai Bhratar Virchand
Publication Year1910
Total Pages808
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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