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सोमसेनकृतत्रैवर्णिका चार, अध्याय पांचवा. पान २४०.
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गेन्द्र गन्धर्वेन्द्र यक्षेन्द्र राक्षसेन्द्र भूतेन्द्र पिशाचेन्द्र चन्द्रादित्य सौधर्मेन्द्र ईशानेन्द्र सनत्कुमारेन्द्र माहेन्द्रेन्द्र ब्रह्मेन्द्र लान्तवेन्द्र शुक्रेन्द्र शातरेन्द्रानतेन्द्र प्राणतेन्द्रारणेन्द्राच्युतेन्द्र सर्वेऽध्यायातायात यानायुधयुवतिजनैः सार्धं भूर्भुवः स्वः स्वधा इदमध्ये चरुममृतमिव स्वस्तिकं यज्ञभागं गृह्णीत गृह्णीत ॥ इतीन्द्राणामभ्यर्चनम् ॥
अर्थ- चतुर्विंशति दलांच्या सभोवती असलेल्या बत्तीस दलांमध्यें असुरेंद्र वगैरे बत्तीस इंद्रांची पूजा करावी.
यक्षार्चनमंत्र.
अथ वज्राग्रस्थापितचतुर्विंशतियक्षाः । ॐ न्हीं गोमुख महायक्ष त्रिमुख यक्षेश्वर तुम्वक पुष्पाक्ष मातङ्ग दयामजित ब्रह्मेश्वर कुमार चतुर्मुख पाताल किन्नर गयड गन्धर्व खगेन्द्र कुबेर वरुण भृकुटि गोमेद धरण मातङ्गाः सर्वेऽप्यायुधवाहनयुवतिसहिता आयातायात इदमर्घ्य गन्धमित्यादि गृहीत गृहीत स्वाहा ॥ यक्षार्चनम् ॥ अर्थ - त्या बत्तीस दलांच्या भोवती असलेल्या चोवीस वनांच्या अग्रावर स्थापित केलेल्या गोमुख
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