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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ई लावैमोररतवनकोपाककरैशरीरकोमोटाकरी। औरचहरा के रंगको निधारै ओरकांत को वहावैधौ स्गरमीकोशोतकर औररुधिरयुद्ध करेभीरमस्त में गरमीचटजानेकोगुणकर शोरदोतोकोतथा दरकोबलपाप्तकरे औरदस्तकावंदकरैवाकोछिल कार्कविजौरासीकोदरकौसिथजवीवात्र तफारसी मुवीज हिंदी मेंदामपहलेदरजा में गरम मऔरतरहै पुरकार मोरवडीदाषच्छी होतीहेगा डेभलकाफुलालातीहै औरोतोंकीतया छातीकी बायकोदूरकर और जिगरकोवलवान करे औरण रदे-सोरमसानेकरोगोंकोगुणादायक है पेटकीसरदी -ौरभजीरणकादरकरतीहै मोरवाकोवीजपहलेद रजा सर्दीरदसरे,खुश्क है सौरपेटकोरकर ताहै नोरजोवीजों कोघोटकेपीवतोखूनकीलटी औरखूनीदस्तीरखूनीववासीरकोयुगकरनाहै।। औरपीसकेचावैनोरुधिरथूकनेकादरकस्ताहाथ जवरजदाअतिनीलभ तीसरेदरनामें सर्दलो रघुश्क है औरसवकामों मेंजमुरेदजेसाहोता है। तवीयतकोपसन्नराधे-नोरनेत्रोंकीजातकोवडा बैओररुधिरवहने कोतथागलिनकुठकोगुणक रोरगर्भनी स्त्रीकीवाईजोधपरवाँधेतो च्छेधकारसेलडकाजनाथजमुर्रदाना तपन्नादूसरेदरजा मेसर्द औरखुश्क है।जना वरसलकाकोलहै केपन्ना पहरनै सदरिद्रसेधना सताकोषाप्त है औरजिगरकोताकतदेता है और For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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