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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ - - - - की औरषनेकीवहुतसीरक्षारपनीचाहिये केसडन जाय औरकीडानपडजायौरजवताईउसकारंगरू। पसुगंधी औरस्वादवदलनजायसवताईकामला नके योग्यहै। फसलदूसरी एकताओषधीवनानेकीविधिोरनस्कीपाकीज़न । तथावलवानरहने ओरप्रसरतेजीरहनेकेषयोजन मैंरुवाताजाजड़तथालकडीकोपानी में पीसकेछान लेवापानीकोनांच में प्रोटावैजवगाडाहोजायनवधू पमेंसुषालेसोरजड़तथालकडीसूषीहोतोनसेजोकु टकरकेपानी में प्रौटाकेोरमसलकेछानलेफिरप कावैजवगाडाहोजावेतवसुषाले औरफूलोकारव याप्रकारवनायाजाताहैकेननकारसनिचोडकेसुषा लेतेह असारह। अर्थातारसनिचोडाकेबलहरेप ताऔरफलफूललकडीजडइनकावनसकताहैनस कोकुचलकेपानीनिचोडकेधूप सुषाले।सन्हाकेवा ललकडीओरजटकावनताहैजोगीलीहोतोनसेकुचले पोरजोसूबीहोतोउसेपानीभिजोककुचलकेस्खूबनो रमेहाथोंसेभीडे केकपा मेंछानकेवापानीकोकाईवासा नमेश्कवेजवनितरजायनौरगादनीचेवेठजायतववा।। नीलगाकेटपकाकेपानीकीदूरकरदे औरसेधूप में। घालाधारण अर्थातनोंनऔरहरवस्तुकेधारनिकाल नेकीयहविधिहै केसकोजलाकेवाकीथोडीसीथोडे सेपानी दो तीनपहरताईभिजोराङ्गप्रीछेएकगाडोसो कपडालेकेवाकेचारोंकानों कोपथकरवाधकेवाके - maa - For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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