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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ Rams e emaeraneerime - - - - - - - - - - - दूसरेपकार केजीपेड-अपनेआपपेदा होतथावोंने सेपेदाहोनेननकेपंचांगकावलकेवलगवावर्ष परियंतरहताहैपीछे निरवलपड़जाता है परंतुज चताईनस्कीसुगंधादिकवदलेनही औरबहसडेग लेनहींतवताईकामलानेकेयोग्यहै औरजवपे डफलेफूलेतवनस्केपतेलेनानचित है औरकली फलफलौरवीजोंकोसमयके ऊपरलेमर्याता जोसमापहलेषकारकेपे काहे वहइनकैलेनेका जानेऔरजवपेडफूलफलकेसूबजायतवकीजड छिलकालकडीऔरउस्कावकललेनामचित है। गगुरणजोसमावस्तुकेलेमेकालिवाहैनस्कायहंप योजन है केवासमयउस्मैपूरावलहोताहैयहयात ||पहलेतथापीछेकेलेनेसेकामलानेके योग्यनरहै। हेवानातअर्थातजीवादिनीवधी तीनधकारसे कामलायेजातेहएकतोसवसंगठनकाजेसवी हट्टीसोरकैचूदुसरेकेषुठेदूरकरकेजेसेरेगमा हीचौरकैगडातीसरेजीवोंकाकाईजोकामासा ताहेजेसेमछलीकापिता ओरमासवचाजानाचाहि येकेतरुण-सोरवलवानजीवोंकामात्रकामाता। है-औरहरेकजीवकैतरुणताकीपरीक्षामथकरलक्ष गोसेहोतीहेगाछीटीपुस्तकमेंउनकेपतक्षहानेका समावकहा और उनकातेजचालसरुगतासोरपरा क्रमसौरमोटेदवलेपन सेमनकाबलमालूमहोता हसौरहरजीवकासवकासवतयाथोडासाउस्काभा गलेनाहीतीमस्कीतहलतालेोरखस्केमुषाने। - - For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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