SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ - - - - - - - - - शहन तथासुपेदकंदकेसंगोटाजवचाशनी। होजाय तवजतारले पुरखानामरेको जोदि लौरमस्तक औरजदर कोवलवान करै ग्रोर चिन्नकोप्रसन्नकरैऔर मुनासिववस्तोंकेसंगनी कोवडावे पोरकामदेवको प्रवल करै-औरभोजन को पचावै॥विधिहरेश्रामरेजोपकनेपरधागये हों। वासकी कीलीशेगोदके चूने के पानी में ग्रामको दुवारा३दिन पीछे निकाल के धोडाले औरथोडी सोजोस देके पानी निकाललेजवपानी कोलवलेश नरहे नवघोडे मेघी भून लेओरधीकीचिकनाई दूर करैसुपेदवूरेकी-बाशनी में डाल देजवचाशनीप मलीहोजाय तवंधा-वाशनी में घोडो और भीगे मिला के चाशनीकरै चौरजस्मेंामरेपराधेयाहीधका स्जवचाशनी पतलीहोजायाकरैतोउस्को गाडीकर लीया करैपुरखाहर्डकोजो पेट को नरम करे।। औरबाइकोदूर करें और उदरको वल घडावे॥विधि ॥हरीहर्डहीयतो अति उन्नम औरनही नोवडीरसूषी हई थोडे दिनपानी में भिजीरामेचौरवापानीकोबद लके और पानी में मोटावेजोछिलकाओरगुठली दोनोंनरमहोजाय पीछे-प्रामरेकेमुरचाकीतरह है। यारकरलेमरधापेटेको जोगरमीकेज्वरोको दूरकर औरवहधाकरके महीनज्वरोरहौलदिली औरगरमीकी मस्तक पीडा को दूरकरैह विधि ऐठेकोछीलकारके बाको कोगदोदूर करके और नमगदेकोजामें वीज होते है उस्कोपीसलेमोरवापा - - For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy