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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९३१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र मुलहटी कासन्न । सुपेद वंशा लोचन घीरा के वीजन की भीगी गेरु । सात २ मासे । वाकला के बीज छले हुए। पोस्त के डोडा नीन २ मासे । के कडाअला हुआ। और सब की वर वर मिश्री ले ॥अथवा ॥ यह चूर न घाँसी के मुवाद को पका के निकाले है ॥ विधि ॥ खतमी के वीज । बंबर को गोंद कतीरा वंश लोचनस् पेट दोर मासे । मुलहटी कासन्न । वीह दानों । खुधाजी के वीज निसासता। वादाम की भीगी। तीन २ मा । से । पोस्त के दाने । वाकला को जून चार मासे। श्र रसब से ध्याधी लाल चूरो ले ॥ अथवा ॥ यहचू रन रुधिरथूकने को गुण करें | विधि | अंजुवा र की जड़। दम्मुल रन वेन । निसासता । मासे । कुलफा के वीज भुने। बंबूर को गोद। कहरुवा । का हू के बीजा का कीया। पोस्त के दाने । कतीरा 15 मुलहटीका सम्मा रु। सुपेद चंदन चार मासे क पूर३ मासे । के कडा जलाहमा । नो मासे और सभ वसेंाधी मिश्री सुपेद लेनी ॥ अथवा ॥ सेलष डीभू सुगंधित पोस्त के डोडा । दम्मुल व वेन ! कहरवा । जुवार की जड । पाँच२ मासे । निशा । सता नभासे । सब की वरा वरसुपेद मिश्री । लेनी || यथवा ॥ यह चूरन कीफक्की र्षोसी औरस्वस/ कोदूर करें। विधि। मुलहटी | पीपरा कर करा वंस लोचन।सव की बरा वर लाल वूरो मिलाके सोने समयजितना । चाहे उतना घाय ऊपर से थोडा गरम। पानी पीले ॥ यथवा देशी-अजबापनाघारी नीं For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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