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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ. ५ सू. २४
वर्षधर पर्वतानां वर्णादिनिरूपणम् ६४१ शुक्लवर्णः, २ निषधपर्वतस्तु - तपनीयत्वात् तरुणादित्यवर्णः, ३ नीलवान् पर्वतस्तु - वैडूर्यमयत्वात् मयूरग्रीवाभः ४, रुक्मीपर्वतस्तु - रुप्यमयत्वाद् रजतवद्धवलवर्णः ५ शिखरीपर्वतः पुनममयत्वात् चीनपट्टवर्णो वर्तते ६ ।
आदिपदेन- क्रमशस्तेषां संस्थानादिकं बोध्यम् । एतेषाञ्च षण्णां वर्षधरपर्वतानाम् - क्षुल्ल हिमवद, महाहिमवद्, निषध, नीलवद्, रुक्मि शिखरिणां स्वरूपाणि तावत् - क्रमशो हेमधवल तपनीय वैडूर्य रजतहेममयानि सन्ति । ते च - षट् पर्वताः पुन र्मणिविचित्रपार्खाः उपरि-मूले च तुल्यविस्ताराः सन्ति ।
तथाचोक्तं जम्बू प्रज्ञप्तौ ७२-७९-८३-११०-१११ - सूत्रेषु - " चुल्ल हिमवंते जंबुtra.... सव्वकणगामए अच्छे संडे तहेव जाव पडिरूवे, महाहिमवंते णाम.... सव्वरयणामए, निसणाम.... सव्व तवणिज्जमए, नीलवंते णामं सव्ववेरुलियामए, रुपिणा ..... सव्वरुप्पामए, सिहरीणामं... सव्वरयणामए - " इति । क्षुल्लहिमवान् जम्बूद्वीपे .... सर्वकनकमयोऽच्छः श्लक्ष्णः - : - तथैव यावत्प्रतिरूपः, महाहिमवान् ... सर्वरत्नमयः, निषधो नाम .... .. सर्वतपनीयमयः, नीलवान् नाम.... सर्ववैडूर्यमयः, रुक्मीनाम.. सर्वरूप्यमयः, शिखरीनाम सर्वरत्नमयः, इति ।
नाम....
स्थानाङ्गे २–स्थाने ३–उद्देशके - चोक्तम् — “बहु समतुल्ला अबिसेसमणाणत्ता अन्नमण्णं णाइवति आयामविक्खम्भ उव्वेह संठाणपरिणाहेणं - " इति । बहुसमतुल्या अविशेष मनाज्ञप्ताः अन्योऽन्यं नातिवर्तन्ते आयीमविष्कम्भोद्वेधसंस्थानपरिणाहेन इति । शुक्लवर्ण है । निषध पर्वत तपनीयमय होने से तरुण सूर्य के समान वर्ण वाला है । नीलवान् पर्वत वैडूर्यमय होने से मयूर की ग्रीवा के वर्ण का है । रुक्मी पर्वत रूप्यमय होने से चांद के समान वर्ण का है । शिखरी पर्वत हेममय (स्वर्णमय) होने से चीन पढ़ट जैसे वर्ण का है ।
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'आदि' शब्द से क्रमशः उनके वर्ण आदि का ग्रहण करना चाहिए । इन छह वर्षधर पर्वतों का अर्थात् क्षुद्रहिमबान्, महाहिमवान्, निषध नीलवंत रुक्मी और शिखरी क्रमशः स्वर्ण वर्ण तपनीयवैडूर्य रजत और हेम के रंग के हैं। इन छहों पर्वतों के पार्श्वभाग मणियों से चित्र-विचित्र हैं तथा उनका विस्तार ऊपर और नीचे बराबर-बराबर है ।
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र में ७२- ७९-८३ - ११० और १११ सूत्रों में कहा है- 'जम्बूद्वीप में क्षुद्रहिमवान् पर्वत पूर्ण रूप से स्वर्णमय है । स्वच्छ है, चिकना है यावत् बहुत सुन्दर है । महाहिमवान् पर्वत सर्व रत्नमय है, निषध सर्व तपनीयमय है, नीलवान् पर्वत सर्ववैडूर्यमय है, रुक्मी पर्वत सर्वरूप्यमय है और शिखरी पर्वत सर्वरत्नमय है ।'
स्थानांगसूत्र के द्वितीय स्थान; तृतीय उद्देशक, ८७ वें सूत्र में कहा है- 'ये छहों पर्वत आयाम, विष्कंभ, अवगाह संस्थान (आकार) तथा परिधि की अपेक्षा बिलकुल समान हैं, इनमें 'कोई भिन्नता नहीं हैं, नानापन नहीं है, परस्पर में विसदृश नहीं हैं ।'
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