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________________ ६१८ तस्वार्थसूत्रे भृतं स्यात् यन्नाग्निना दह्यते न वायुनाऽपहियते न जलेन क्लिद्यते, ततस्तस्मा तादृशात्पल्यात् प्रतिसमयमेकैकबालाग्रामपहियते । ततो यावता काटेन तत्पल्यं रिक्तं भवेत्तावत्कालपरिमितमेकमुद्धारपल्योपमं भवति, तैस्तादृशैः दश कोटि कोटि परिमिते, पल्योपमैरेकमुद्धारसागरोपमं निष्पद्यते एतादृश सार्धद्वयोद्वारसागरोपम समयराशिप्रमाणतुल्याः खलु द्वीपसमुद्राः सन्ति । तत्राऽपि-प्रथमद्विपादनन्तरः प्रथमः समुद्रः, द्वितीय द्वीपादनन्तरो द्वितीयः समुद्रः, तृतीयादनन्तर स्तृतीयः समुद्र इत्यादि रीत्या प्राक् तावद् द्वीपो वर्तते पश्चात् समुद्रोऽस्ति, तदनन्तरः पुनीपः-तदन्तरः पुनः समुद्रः-इत्येवं यथासंख्यमवगन्तव्यम् । तद्यथा __ प्रथमं तावद् जम्बूद्वीपो नाम द्वीपः लवणोदधिः समुद्रश्च-१ ततो धातकीखण्डो नाम द्वीपः कालोदधिः समुद्रश्च-२ ततः पुष्करवरो नाम द्वीपः पुष्करोदधिः समुद्रः-३ ततो वरुणवरोनाम द्वीप वरुणोदधिः समुद्रश्च-४ ततः क्षीरवरो नाम द्वीपोऽस्ति क्षीरोदधिः समुद्रश्च-५ ततो घृतवरो नाम द्वीपः धृतोदधि समुद्रश्च-६ततश्च-ईक्षुवरोनाम द्वीपः इक्षुवरोदधिः समुद्रश्च-७ ततो नंदीश्वरो नाम द्वीपः नन्दीश्वरोदधि समुद्रश्च-८ ततश्च-अरुणवरो नाम द्वीपः अरुणवरोदधिः समुद्रश्च-९ इत्येवं रीत्या स्वयम्भूरमणसमुद्रपर्यन्ताः असंख्येया द्वीपसमुद्राः सन्तीति भावः । ते खलु सर्वे द्वीप-समुद्रा न शक्यन्ते नामग्राहमाख्यातुं तेषामसंख्येयत्वात्, तत्र-"जबूद्वीपः - इत्यादि संज्ञा-संज्ञिसम्बन्धश्चा-ऽनादिकालिकोऽवसेयः । द्विर्गता आपो यस्मिन् इति द्वीपहो, वह पल्य एक दो तीन उत्कृष्ट से सात रात्रि के उगे हुए बालानों से ऐसा ठोस ठोंसकर भरा जाय कि जिस बालाग्र को न अग्नि जला सके न वायु उडा सके और न पानी उन्हे क्लिन्न-गीला कर सके । इस तरह ठोंसकर भरे हुए पल्यसे प्रति समय एक एक बालाग्र निकाला जाय, तो जितने काल से वह पल्य रिक्त-खाली होवे उतने काल प्रमाण का एक उद्धार पल्योपम होता है । वैसे दस करोडा-करोड उद्धारपल्योपम होते हैं तब एक उद्धारसागरोपम होता है। इस प्रकार के अढाई उद्धार सागरोपमों में जितने समय होते हैं उतने ही द्वीप और समुद्र हैं। इन द्वीपों और समुद्रों की अवस्थिति अनुक्रम से इस प्रकार है-पहले द्वीप के बाद पहला समुद्र है, दूसरे द्वीप के बाद दूसरा समुद्र है तीसरे द्वीप के बाद तीसरा समुद्र है, इत्यादि क्रम से पहले द्वीप फिर समुद्र फिर द्वीप और समुद्र इस प्रकार अनुक्रम से द्वीप और समुद्र हैं । उदहारणार्थसर्वप्रथम जम्बूद्वीप नामक द्वीप है, उसे चारों ओर से वेष्टित किये हुए लवणोदधि नामक समुद्र है; तत्पश्चात् लवणोदधि समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए धातकीखंड नामक द्वीप है, फिरे कालोदधि नामक समुद्र है, फिर पुष्करवर नामक द्वीप और पुष्करोदधि समुद्र है, फिर वरुणवर नामक द्वीप और वरुणोदधि समुद्र है, फिर क्षीरवर नामक द्वीप और क्षीरोदधि समुद्र है, फिर घृतवर नामक द्वीप और घृतोदधि समुद्र है, फिर इक्षुवर नामक द्वीप और इक्षुवरोदधि समुद्र है, फिर नन्दीश्वर नामक द्वीप और नन्दीश्वरोदधि समुद्र है, फिर अरूणवर नामक द्वीप और अरूणवरोदधि नामक समुद्र है; इस क्रम से स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। ___सभी द्वीपों और समुद्रों का नामोल्लेख करके गिनाना संभव नहीं है, क्योंकि वे असंख्येय हैं। जम्बूद्वीप अनादि काल से हैं और उसका 'जम्बूद्वीप, यह नाम भी अनादि काल से है ।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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