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________________ ५० वास्ते केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति । गोयमा जहणणेण संखेज्जे दीवसमुझे उक्कोसेण वि संखेज्जे दीवसमुद्दे, सोहम्मगदेवाणं भंते केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणति कासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग उक्कोसेणं अहे जाल इमीसे रमणप्पभाए हिडिल्ले चरमंते तिरियं जाव असंखिज्जे दीवसमुद्दे उड्डे जाव-सगाई विमाणाई ओहिणा जाणंति पासंति । एवं ईसाणगदेवावि सणंकुमारदेवावि एवं चेव नवरं जाव अहे दोच्चाए सक्करपभाए पुढवीए हिडिल्ले चरमंते एवं माहिंददेवावि बंभलोयलंतगदेवा तच्चाए पुढवीए हिडिल्ले चरमंते, महासुक्कसहस्सारगदेवा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेढिल्ले चरमंते आणय-पाणय आरण-च्चुयदेवा अहे जाव पंचमाए धूमप्पभाए हेडिल्ले चरमंते हेटिममज्झिमगेवेज्जगदेवा अहे जाव छट्ठाए तमाए पुढवीए हेडिल्ले जाव चरमंते उवरिमगेबिज्जगदेवाणं भंते केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागे उक्कोसेणं अहे सत्तमाए हेटिल्ले चरमंते तिरियं जाव-असंखेज्जे दीवसमुद्दे उडूरं जाव सयाई विमाणाई ओहिणा जाणंति पासंति अणुत्तरोवबाइयदेवाणं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति गोयमा ! संभिन्न लोपनालिं ओहिणा जाणंति पासंति । - असुरकुमाराः खलु भदन्त ! अवधिना कियत क्षेत्रं जानन्ति--पश्यन्ति । गौतम ! जघन्येन पञ्चविंशतियोजनानि, उत्कृष्टेनाऽसंख्येयान् द्वीपसमुद्रान् अवधिना जानन्ति पश्यन्ति । नागकुमाराः खलु-जघन्येन पञ्चविंशति योजनानि, उत्कृष्टेन-संख्येयान् द्वीपसमुद्रान् अवधिना जानन्ति पश्यन्ति । __ एवं यावत्-स्तनितकुमाराः ........वानव्यन्तराः यथा नागकुमाराः । ज्योतिष्काः खलु भदन्त-! कियत् क्षेत्रम् अवधिना जानन्ति पश्यन्ति– गौतम-जघन्येन संख्येयान् द्वीपसमुद्रान् , उत्कृष्टेनाऽपि-संख्येयान् द्वीपसमुद्रान् । सौधर्मदेवाः खलु भदन्त ! कियत् क्षेत्रम् अवधिना प्रज्ञापनासूत्रके ३३ तेतीसवें अवधिपद में कहा हैप्रश्न-भगवन् ! असुरकुमार अवधिज्ञान के द्वारा कितने क्षेत्र को जानते-देखते हैं? उत्तर--गौतम, जघन्य पच्चीस योजन, उत्कृष्ट असंख्यात द्वीप- समुद्रों को अवधिज्ञान से जानते देखते हैं । नागकुमार अवधिज्ञान से जघन्य पच्चीस योजन और उत्कृष्ट संख्यात द्वीप--समुद्रों को जानते देखते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझनाचाहिए वानव्यन्तर नागकुमारों की तरह जानते हैं । प्रश्न----भगवन् ज्योतिष्क देव अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को जानते देखते हैं ? उत्तर--गौतम ! जघन्य से संख्यात द्वीप समुद्रों को ओर उत्कृष्ट से भी संख्यात द्वीप समुद्रोंको अवधिज्ञान से जानते देखते हैं,
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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