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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. १३ सर्वव्रतसामान्यभावनानिरूपणम् ४६९ गुप्तिः-३ आलोकितभाजनभोजनम्-४ आदानभाण्डामत्रनिक्षेणासमितिः-५ अनुवीचिभाषणम्६ क्रोधविवेकः-७ लोभविवेकः-८ भयविबेकः-९ हास्यविवेकः-१० अवग्रहानुज्ञापनता-११ अवग्रहसोमाज्ञानता-१२ स्वयमेवावग्रहानुग्रहणता-१३ साधर्मिकावग्रहमनुज्ञाय परिभुजनता-१४ साधारणभक्तपानमनुज्ञाप्य परिभुञ्जनता-१५ स्त्रीपशुपण्डकसंसक्तकशयनासनवर्जनता-१६ स्त्रोकथावर्जनता-१७ पूर्वरतपूर्वक्रीडितानामननुस्मरणता-१८ स्त्रीणामिन्द्रियालोकनवर्जनता-१९ प्रणीताहारवजेनता-२० श्रोत्रेन्द्रियरागोपरतिः-२१ चक्षुरिन्द्रियरागोपरतिः-२२ घ्राणेन्द्रियरागोपरतिः२३ जिह्वेन्द्रियरागोपरतिः-२४ स्पर्शेन्द्रियरागोपरतिः-२५ इति ॥ १२ ॥ मूलसूत्रम् ---"हिंसादिसु उभयलोगे घोरदुहं चउग्गइभमणं च-" ॥१३ छाया- "हिंसादिषुभयलोके घोरदुःखं चतुर्गतिभ्रमण च" ॥ १३ ॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे प्राणातिपातादिविरमणलक्षणेषु पञ्चसु व्रतेषु प्रतिव्रतमधिकृत्य पञ्च-पञ्चभावनाः प्ररूपिताः, सम्प्रति-सामान्यतः सर्ववतसाधारणी भावनाः प्रतिपादयितुमाह "हिंसादिसु" इत्यादि । हिंसादिषु-प्राणातिपाता-ऽनृत-स्तेया-ऽब्रह्मचर्य-परिग्रहेषु पञ्चसु वक्ष्यमाणास्रवेषु-उभयलोके, समवायांगसूत्र के पचीसवें समवाय में कहा है पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएँ कही हैं, वे इस प्रकार हैं-(१) ईर्यासमिति (२) मनोगुप्ति (३) वचनगुप्ति (४) आलोकितपानभोजन (५) आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा समिति (६) अनुवीचिभाषण (७) क्रोधविवेक (८) लोभविवेक (९) भयविवेक (१०) हास्यविवेक (११) अवग्रहानुज्ञापनता (१२)अवग्रहसीमाज्ञानता (१३) स्वयमेवावग्रहानुग्रहणता (१४) साधर्मिकों की अनुमति लेकर आहार आदि भोगना (१५) सामान्य आहार-पानी को अनुमति लेकर भोगना (१६) स्त्री--पशु पण्डकरहित शयनासन का त्याग करना (१७) स्त्री कथा का त्याग (१८) पूर्व भोगे हुए भोगों का स्मरण न करना (१९) स्त्रियों की इन्द्रियों के अवलोकन का त्याग करना (२०) प्रणीताहारवर्जन (२१) श्रोत्रेन्द्रियरागोपरति-शब्द के विषय में राग न करना (२२) चक्षुरिन्द्रिय के विषय में राग नकरना (२३) घ्राणेन्द्रिय के विषय में राग न करना (२४) जिह्वाइन्द्रिय के विषयमें राग न करना और (२५) स्पर्शनेन्द्रिय के विषय में राग न करना ॥१२॥ सूत्रार्थ ----'हिंसादिसु उभयलोगे घोरदुहं' इत्यादि सूत्र १३ हिंसादि पाप करने पर इह-परलोक में घोर दुःख होते हैं और चारों गतियो में परिभ्रमण करना पड़ता है ॥१३॥ तत्त्वार्थदीपिका---पूर्व सूत्र में प्राणातिपातविरमण आदि पाँच महाव्रतों में से प्रत्येक की पाँच-पांच भावनाओं की प्ररूपणा की, अब ऐसी भावनाओं का निरूपण करते हैं जो सभी व्रतों की स्थिरता के लिए समान हैं
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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