SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. १२ पञ्चविंशतिर्भाधनानिरूपणम् ४६१ बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहान्निवृत्तिः इति । एवञ्चोक्तरीत्या स्थूलेभ्यः प्राणातिपात-मृषावाद-स्तेय-मैथुनपरिग्रहेभ्यो विरमणरूपाणि पञ्चाणुव्रतानि भवन्तीति फलितम् । उक्तञ्च स्थानाङ्गे ५-स्थाने १-उद्देशके–“पञ्चाणुव्वया पण्णत्ता, तं जहा थूलाओ पाणाइबायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं थूलाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणे-" इति । पञ्चाणुव्रतानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा- स्थूलात् प्राणातिपाताद् विरमणम्, स्थूलाद् मृषावादाद् विरमणम्, स्थूलाददत्तादानाद् विरमणम्, स्वदारसन्तोषः, इच्छापरिमाणम् इति ॥११॥ मूलसूत्रम्- "तत्थेज्ज8 ईरियाइया पणवीसं भावणाओ-"॥१२॥ छाया-तत्स्थैयार्थम्-ईर्यादिकाः पञ्चविंशतिर्भावनाः" ॥१२॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्व देशतो हिंसादिविरतिलक्षणपञ्चाऽणुव्रतादिस्वरूपं प्ररूपितम्, सम्प्रति तेषां बतानां स्थिरतासम्पादनार्थं तावद् ईर्यादिका पञ्चविंशतिर्भावनाः प्ररूपयितुमाह-"तत्थेज्ज₹, इत्यादि, । तत्स्थैर्यार्थम् तेषां पूर्वोक्तानां व्रतानां स्थूलप्राणातिपातविरमणादिलक्षणानां स्थैर्यार्थम्- स्थिरताकरणाथै दृढीकरणार्थम् ईर्यादिकाः-इर्यादिलक्षणाः पञ्चविंशतिर्भावना भवन्ति । तत्र--ईर्या-ईरणम्, यतनया गमनम् , १ आदिपदेन—मनः प्राशस्त्य-वचः प्राशस्त्यै मकान), सुवर्ण धन, धान्य आदि बाह्य वस्तुओं पर ममत्व होना बाह्य परिग्रह है । परिग्रह परिमाण नामक अणुव्रत में समस्त वस्तुओं का त्याग नहीं किया जाता किन्तु उनकी मर्यादा कर ली जाती है । इसी को स्थूलपरिग्रहत्याग भी कहते हैं । इस प्रकार स्थूलप्राणातिपातविरमण, स्थूलमृषावादविरमण, स्थूलअदत्तादानविरमण, स्थूल मैंथूनविरमण और परिग्रहपरिमाण नामक पाँच अणुव्रत होते हैं । ___स्थानांगसूत्र के पाँचवें स्थानक के प्रथम उद्देशक में कहा है-अणुव्रत पाँच कहे गये हैंस्थूलप्राणातिपातविरमण, स्थूल मृषावादविरमण, स्थूल अदत्तादानविरमण, स्वदारसन्तोष और इच्छापरिमाण ॥११॥ सूत्रार्थ -'तत्थेज्ज8 इरियाइया पणवीसं' इत्यादि ।१२। व्रतों की स्थिरता के लिए पच्चीस भावनाएँ होती है ॥१२॥ तत्त्वार्थदीपिका- इससे पूर्व स्थूल रूप से हिंसा का त्याग करना आदि पाँच अणुव्रतों का प्रतिपादन किया गया, अब उन व्रतों में स्थिरता लाने के लिए ईर्या आदि पच्चीस भावनाओं का कथन करते हैं-पूर्वोक्त प्राणातिपातविरमण आदि व्रतों की स्थिरता के लिए ईर्या आदि पच्चीस भावनाए हैं (२) प्राणातिपात विरमणमहाव्रत की पाँच भावनाएँ -(१) इर्या-यतनापूर्वक गमन करना (२) मन को प्रशस्तता (३) वचन की प्रशस्तता (४) एषणा
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy