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तत्वार्थस्त्रे तथाच-अण्डे पक्ष्यादि प्रादुर्भावककोषे जायन्ते-उत्पद्यन्ते इत्यण्डजाः पक्षि-सर्पादयः । पोता एव जाताः पोतजाः हस्त्यादयो न जराय्वादिना वेष्ठिताः पूर्वावयवयोनिनिर्गतमात्रा एव परिस्पन्दादि सामोपेताः पोतजाः।
अथवा-पोतश्चर्म, तेन वेष्टिता लक्ष्यन्ते । तथा च पोतो इव वस्त्र सम्मार्जिता इव गर्भवेष्टनचर्माऽपावृतत्वात् जायन्ते-उत्पद्यन्ते इति पोतजाः।
जरायुजाः-जरामेति-गच्छतीति जरायुः गर्भवेष्टनचर्म तस्माज्जायन्ते इति जरायुजाः मनुष्य-गो-महिषादयः । रसजाः-रसे मधलक्षणे-विकृतमधुरसादौ वा जायन्ते इति रसजाः ।
. रसजो मद्यकीटः स्यात् इति हैमः । संस्वेदजाः-संस्वेदात्-धर्मात्-जायन्ते इति संस्वेदजाः यूका-लिक्षा मत्कुणादयः ।
संमूर्च्छन-संमूर्छः गर्भाधानम् , [मातापितृ संयोगं विनैव] स्वयं समुत्पत्तिः मनोविकलो जीव उच्यते।
अथवा-समन्ततो देहस्य मूर्च्छनम् अवयवसंयोगः तेन निर्वृत्ताः संमूर्छिमाः माता-पितृसंयोग विनैव स्वयमुत्पद्यमानाः पिपीलिकाः-मक्षिका-मत्कोटकादयः। उद्भिज्जाः उद्भिद्यपृथिवीं भित्वा जायन्ते इति उद्भिज्जाः शलभप्रभृतयः । - जो पक्षी तथा सर्प आदि अंडे में उत्पन्न होते हैं, वे अण्डज कहलाते हैं । जो पोत रूप ही जन्म लेते हैं, जरायु से लिपटे हुए नहीं जन्मते, योनि से बाहर आते ही चलने-फिरने लगते हैं, वे हाथी आदि पोतज कहलाते हैं ।
अथवा पोत का अर्थ है चर्म, उससे वेष्टित लक्षित होते हैं। अतः पोत अर्थात् गर्भ को वेष्टित चर्म से अपावृत होने के कारण वस्त्र से पोंछे हुए शरीर से जो उत्पन्न होते हैं, वे पोतज कहलाते हैं।
- जो जरा को प्राप्त हो जाय वह जरायु है, अर्थात् गर्भ को लपेटने वाली चमड़ी। उससे जन्म लेने वाले मनुष्य, गाय, भैंस आदि जरायुज कहलाते हैं।
रस अर्थात् मद्य में या विकृत मधुर रस आदि में जन्मने वाले जीव रसज कहलाते हैं। हैम कोष में कहा है-मद्य का कीड़ा रसज कहलाता है । पसीने से उत्पन्न होने वाले जू, लीख मत्कुण आदि संस्वेदज कहलाते हैं ।
जो जीव माता--पिता के संयोग के बिना ही उत्पन्न होते हैं, वे अमनस्क जीव संमूर्छिम हैं।
अथवा इधर--उधर से देह का बन जाना अवयवों का संयोग हो जाना मूर्च्छन' कहलाता है । उससे जो उत्पन्न हो वे भी संमूर्छिम कहलाते हैं। ये चिउंटी, मक्खी, खटमल आदि जीव माता पिता के संयोग के विना ही जन्म लेते हैं । जो शलभ (पतंग) आदि जीव पृथ्वी को भेद कर उत्पन्न होते हैं, वे उद्भिज्ज कहलाते हैं।