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तत्त्वार्थसूत्रे उक्तञ्च प्रज्ञापनायां १३ परिणामपदे १८१ सूत्रे-“दुविहे परिणामे पण्णत्ते, तं जहा जीवपरिणामे य, अजीवपरिणामे य-" इति । द्विविधः परिणामः प्रज्ञप्तः, तद्यथा--जीवपरिणामश्च, अजीवपरिणामश्वेति ॥३१॥
इति श्री विश्वविख्यात जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक - पञ्चदश भाषा कलितललितकलापालापक प्रविशुद्धगद्यपद्यानैकग्रन्थनिर्मापक शाहुच्छत्रपति कोल्हापुर राजप्रदत्त जैनशास्त्राचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्य श्री घासीलाल व्रतिविरचितस्य दीपिका नियुक्ति टीकाद्वयोपतेस्य तत्वार्थसूत्रस्य द्वितीयमध्ययननं
समाप्तम् ॥२॥ प्रज्ञापनासूत्र के तेरह वें परिणाम पद के १८१ वें सूत्र में कहा है'परिणाम दो प्रकार का कहा है; वह इस प्रकार है-जीवपरिणाम और अजीवपरिणाम ॥३१॥ श्री जैन शास्त्राचार्य जैन धर्मदिवाकर पूज्य श्री घासीलाल जी महाराज विरचित तत्वार्थसूत्र की दीपिका एवं नियुक्ति
नामक व्याख्या का दूसरा अध्ययन समाप्त ॥२॥