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________________ ३२८ तत्त्वार्थस्त्रे उच्यते, तदा-तस्यापि समवायस्य समवायान्तरेण वृत्तित्वम् , तद्धटकसमवायस्यापि पुनः-समवाइस प्रकार की यान्तरेण वृत्तित्वमित्येवमनवस्थापातः । . - यदि तु-अनाश्रित एवासौ समवायः स्वतन्त्रः सम्बन्धो भवति, तदा-द्रव्यगुणयोः कयाचिद्वृत्त्याऽनाश्रित एव समवाय इति न द्रव्यं गुणैः सम्बद्धं समवायेन सम्भवति, तस्य समवायस्य घट पटादिवद् द्रव्यगुणयोरनाश्रितत्वात् घटपटयोः खलु न परस्परं समवायलक्षणः सम्बन्धः सम्भवति, तस्मात् स्थित्यंशलक्षणं द्रव्यं गुणपर्यायवृत्त्या परिणमते, गुणपर्यायाश्च–परिणामविशेषा भवन्ति । ते चापि परिणामविशेषा गुणा निर्गुणा भवन्ति । शुक्लादिरूपादीनां-घटकपालादीनाञ्च गुणपर्या. याणां नाऽन्ये गुणपर्यायाः सन्ति, अपितु-परिणामिनो द्रव्यस्यैव शुक्लादिरूपादिगुणपरिणामःपिण्डघटकपालसंस्थानादिपर्यायपरिणामश्च भवति । न खलु तस्यैव शुक्लादिरूपादेरन्ये शुक्लादिरूपादयो गुणाः परिणामाः, नापि कुम्भादिसंस्थानस्याऽन्ये संस्थानादयः पर्यायाः परिणामा भवन्ति । तस्मात्--गुणा निर्गुणा उच्यन्ते । पर्यायाश्च-गुणेभ्य एकान्तेन नातिरिच्यन्ते, गुणपर्यायाणां परस्परं कथञ्चिदैक्याऽभ्युपगमात् । "अत्रेदं बोध्यम्-द्रव्यं तावद् भव्यं योग्यं युगपद्भाविन्याः शुक्लादि-रूपादि-ज्ञानावाय से रहेगा और तीसरे समवाय के लिए पुनः चौथे समवाय की आवश्यकता होगी इस प्रकारक की स्थिति में अनस्था दोष आता है । __ अगर समवाय सम्बन्ध आश्रित हुए बिना स्वतंत्र ही रहता है तो फिर द्रव्य में गुणों के रहने के लिए भी समवाय की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए । तब तो यह भी नहीं मानना चाहिए कि द्रव्य समवाय संबंध के द्वारा गुणों के साथ सम्बद्ध है, क्योंकि आपके कथनानुसार घट और पट की समान समवाय द्रव्य और गुण में आश्रित नहीं है। घट और पट में समवाय संबंध का संभव नहीं है । अतएव तथ्य यह है कि, स्थितिअंश रूप द्रव्य गुणों और पर्यायों के रूप में परिणत होता रहता है । गुण पर्याय उसके परिणमन विशेष है। उनमें जो गुण रूप परिणाम है, वह निर्गुण है अर्थात् गुण में गुण नहीं होता । शुक्ल आदि रूप आदि तथा घट कपाल आदि गुणों और पर्यायों के अन्य कोई गुणपर्याय नहीं होते । किन्तु परिणामी द्रव्य का ही शुक्ल आदि रूप आदि गुण परिणाम होता है और पिण्ड घट कपाल संस्थान आदि पर्यायपरिणाम होता है । उस शुक्ल आदि रूप आदि गुण रूप आदि के दूसरे कोई शुक्ल आदि नहीं होते और न घट आदि संस्थान (आकार) के अन्य कोई संस्थान आदि पर्याय होते हैं। ___ इस कारण गुण निर्गुण होते हैं । पर्याय गुणों से एकान्त भिन्न नहीं हैं; क्योंकि गुणों और पर्यायों की कथंचित् एकता स्वीकार की गई है । यहाँ यह समझ लेना चाहिए की द्रव्य-युगपद् भाविनी शुक्ल आदि रूप आदि ज्ञान
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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