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दीपिकानियुक्तिश्च अ०१ . कमर, वि-520M
नवतत्वनिरूपणम् २५. वनस्पतिकायिकानां द्वीप-समुद्रादिस्थानं बोध्यम् । सूक्ष्माणाञ्च -वनस्पतिकायिकानां सर्वलोकव्यापित्वं बोध्यम् ।
अत्रेदं बोध्यम्-त्रसत्वं द्विविधम् क्रियातो लब्धितश्च । तत्र क्रिया तावत् कर्म--चलन-. देशान्तरप्राप्तिः-गतिः तस्मात्-क्रियामाश्रित्य तेजस्कायिक-वायुकायिकयोस्त्रसत्वमवगस्तव्यम् । लब्धिः पुनस्त्रसनामकर्मोदयः, तस्मात् त्रसनामकर्मोदयाद् देशान्तरप्राप्तिलक्षणक्रियावत्वाच्च द्वीन्द्रिया दयनसा व्यपदिश्यन्ते ।
___ स्थावरनामकर्मोदयलक्षणलब्ध्या च सर्वे पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायिकाः स्थावरा व्यपदिश्यन्ते । मुक्ताश्च न त्रसाः न स्थावराः, अतएव-न ते बादरा वा सूक्ष्मा वा व्यवहियन्ते संसारिणामेव त्रस-स्थावरत्वयोः सूक्ष्मबादरत्वयोश्च प्रतिपादितत्वात् इति भावः । सूत्र-६॥
मूल सूत्रम्--" पुणो दुविहा पज्जत्तिया-अपज्जत्तिया य ॥७॥ छाया--पुनद्विविधाः पर्याप्तकाः-अपर्याप्तकाश्च-"
दीपिका-पूर्वसूत्रे तावत्-सूक्ष्म-बादरभेदेन संसारिणो जीवा द्विविधा भवन्तीत्युक्तम् सम्प्रति-तेषामेव जीवानां पुनः प्रकारान्तरेण द्वैविध्यं प्रतिपादयितुमाह-“पुणो दुविहा, पज्जत्तिया अपज्जत्तिया य"-इति । कायिक हैं। बादर बनस्पतिकायिकों के स्थान द्वीप समुद्र आदि हैं । सूक्ष्म वनस्पतिकाय सम्पूर्ण लोकव्यापी समझना चाहिए ।
यहाँ यह समझना चाहिए कि त्रसत्व दो प्रकार का है-क्रिया से और लब्धि से। क्रिया का अर्थ है कर्म-चलन, एक जगह से दूसरी जगह पहुँचना अर्थात् गति करना । इस क्रिया की अपेक्षा से तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव भी त्रस हैं। लब्धि का अर्थ है त्रसनाम कर्म का उदय । इसकी अपेक्षा से तथा गमन रूप क्रिया की अपेक्षा से द्वीन्द्रिय आदि जीव ही त्रस कहलाते हैं।
स्थावरनामकर्म के उदय रूप लब्धि की अपेक्षा से सब पृथ्वी कायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव स्थावर कहलाते हैं ।
'मुक्त जीवन न त्रस है, न स्थावर । अतएव वे न बादर कहलाते हैं, न सूक्ष्म ही । त्रस, स्थावर, सूक्ष्म और बादर का व्यवहार संसारी जीवों में ही होता है ॥६॥ । मूलसूत्रार्थ- 'पुणो दुविहा' इत्यादि ॥७॥
जीव पुनः दो प्रकार के है-पर्याप्त और अपर्याप्त ॥७॥
तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्र में कहा जा चुका है कि सूक्ष्म और बादर के भेद से संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं । अब उन्हीं के दूसरे प्रकार से दोभेद बतलाने के लिए कहा है। संसारी जीव पुनः दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त ।