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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ०२ सू.० २२ परमाणुपुद्गलानामुत्पत्तिहेतुकथनम् २८१ एवमेव परमाणुरेकस्मिन् आकाशप्रदेशे व्यवस्थितः सन् अन्येषामपि परमाणूनां प्रभूतानामवगाहनं कुर्वतां विघातम्प्रति न निवर्तितुमुत्सहते.। अथैवं तर्हि असति प्रतिधाते कथं महतो द्रव्यस्य निष्पत्तिः स्यात् ? संघातस्तु-सति संयोगे सम्भवति, संयोगः पुनरप्राप्तयोः प्राप्तिमात्रम्, न तु-परस्परावेशः संयोगः ? इतिचेदत्रोच्यते---महतो द्रव्यस्याऽऽरम्भकाले परमाणूनामप्रतिघातित्व मस्मान्प्रति--असिद्धम्. । तथाहि-परमाणूनां त्रिविधं प्रतिघातमामनन्ति भगवन्तो बन्धपरिणामोपकाराभाववेगाख्यम् , तत्र-बन्धपरिणामप्रतिघातः स्निग्धरूक्षत्वाद्भवति, । उपकाराभावलक्षणप्रतिघातस्तु धर्माधर्माकाशानां गतिस्थित्यवगाहोपकारप्रकरणे प्रतिपादितः । लोकादन्यत्र जीवानामजीवानाञ्च गतेः प्रतिघातः, गत्युपग्रहहेतुरहितत्वात् मत्स्य-ग्राहादेरिवजलादन्यत्र । तस्मात्-परमाणो लॊकान्ते प्रतिघातो भवति, उपकारोभावात्प्रतिघातः । एवं-परमाणोः परमाण्वन्तरेणा-ऽऽपतता--विस्रसासमुद्भूतगतिवेगेन प्रतिघातो दृष्टः, वेगगतिं प्राप्तः सन् परमाणुरापतन् जवशालिनमेव परमाणुः प्रतिहन्ति, वेगवत्वे सति स्पर्शवत्वात्-मूर्त्तिमत्वाच्च प्रबलवेगो वायुर्वाद्यन्तरमिवे--ति वेगात्प्रतिघातित्वमध्यवसीयते । तथा और उसमें दूसरा दीपक रख दिया जाय तो उसका प्रकाश भी उसमें समा जाता है और साथ ही शीत, शब्द आदि के पुद्गल भी समाये रहते हैं; उनमें से कोई पुद्गल दूसरे पुद्गल की अवगाहना का प्रतिरोध नहीं करता, इसी प्रकार आकाश के एक ही प्रदेश में अनन्त परमाणु बिना विरोध के समाये रहते हैं । शंका-अगर परमाणु प्रतिघातरहित हैं तो स्थूल द्रव्य की निष्पत्ति कैसे होगी ? योग होने पर संघात होता है और संयोग का अर्थ है अप्राप्त की प्राप्ति, न कि एक दूसरे में समाना । समाधान-स्थूल द्रव्य की उत्पत्ति के समय परमाणुओं का अप्रतिघाती होना हमें सिद्धनहीं है । परमाणुओं का प्रतिघात भगवान् तीन प्रकार का मानते हैं-बन्धपरिणाम, उपकाराभाव और वेग । बन्धपरिणाम प्रतिघात स्निग्धता और रूक्षता के कारण होता है। उपकाराभाव प्रतिघात धर्म, अधर्म और आकाश के गति, स्थिति और अवगाह रूप उपकार के प्रकरण में प्रतिपादन किया जा चुका है । लोक से बाहर जीवों और पुद्गलों की गति का प्रतिघात हो जाता है, क्योंकि वहाँ गति का निमित्त कारण मौजूद नहीं है। जैसे मत्स्य और ग्राह आदि की गति जल से बाहर निमित्त कारण (जल) के अभाव में नहीं होती । इसी कारण लोक के अन्त में परमाणु का प्रतिघात हो जाता है । इसी प्रकार जब कोई परमाणु स्वाभाविक गति करता हुआ वेग में होता है और वह आड़ा आ जाता है तो उसके वेग के कारण परमाणु का प्रतिघात होता है। वेगयुक्त गति करता हुआ परमाणु वेगवान् परमाणु का ही प्रतिघात करता है, क्योंकि वह वेगवान् होते हुए स्पर्शवान होता है और मूर्तिमान् होता है, जैसे प्रबल वेग वालीवायु
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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