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तत्वार्थ सूत्रे
प्रमाणएवेति सामर्थ्याभावेन नातः परम् अनावरणवीर्यस्यापि भगवतः संहरणं सम्भवति, किमुत वक्तव्यं शेषसंसारिण इति ।
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स्वभावश्चाऽयम् एतावानेवोपसंहारः, नहि हि स्वभावे पर्यनुयोगः सम्भवति । किञ्चकर्माऽसौ विद्यते तस्माद अल्पतर उपसंहारो न भवति । अथ कर्मवियुक्तः कस्मान्नोपसंहरतीति चेन्मैवम् प्रयत्नाऽभावात् । प्रयत्नाभावश्च - करणाभावात् ।
अत्रेदं बोध्यम् —संक्षिपतो विकसन सङ्कोचनधर्मत्वात् आत्मप्रदेशसमूहः कमलनालतन्तुसन्तानवत् - अविच्छेदेन विकासमासादयति । अविच्छेदश्च – प्रदेशानाममूर्तत्वात् विकासधर्मत्वात् एकत्वपरिणतत्वात् जीवाभिवृद्धेविकासश्च सिद्धः । छेददर्शनात् सक्रियत्वाच्च कमलनालतन्तुसन्तानवद्-गृहगोधिकापुच्छवदेव च जीवप्रदेशाः सकलमन्यद् विशन्ति स्वल्पं परित्यज्य ।
अथ मस्तके छिन्ने सति शिरोऽपविध्य कथं स प्रदेशसन्तानं छिन्नमस्तकं शरीरं नाssविशति इति चेत् ? उच्यते - वेदनायुषोर्भेदेन दोषाभावः । बहवो जीवप्रदेशाः संघीभूयासते यद्यपि सिद्ध जीवों का सहज वीर्य निरावरण होता है तथापि उनमें यह सामर्थ्य नहीं है। कि वे उससे अधिक अवगाहना का संकोच कर सकें । संसारी जीवों का तो कहना ही क्या ? जीव का स्वभाव ही ऐसा है कि इससे अधिक संकोच नहीं हो सकता और स्वभाव के विषय में कोई प्रश्न नहीं किया जा सकता । इसके अतिरिक्त संसारी जीव कर्ममुक्त होने के कारण उससे अधिक संकोच नहीं कर सकता ।
शंका -- कर्ममुक्त जीव क्यों अधिक संकोच नहीं करता !
समाधान — इस कारण कि वे प्रयत्न नहीं करते ।
शंका- प्रयत्न क्यों नहीं करते ?
समाधान -- प्रयत्न करने का कोई कारण विद्यमान नहीं रहता ।
यहाँ यह समझ लेना चाहिए - संकुचित आत्मप्रदेश जब विकसित होते हैं तब उनका संबन्ध परस्पर टूट नहीं जाता, वरन् कमल की नाल के तन्तुओं के समान वे आपस में जुड़े रहते हैं । सम्बन्ध न टूटने का कारण यह है कि प्रथम तो वे अमूर्त हैं, दूसरे विकासशील हैं और तीसरे एकत्व रूप परिणाम में परिणत होते हैं । जीव की का विकास सिद्ध होता है ।
वृद्धि देखने से आत्मप्रदेशों
छिपकली की पूछ जब कट जाती है तो थोड़ी देर तक वह छटपटाती है, बाद में स्तब्ध हो जाती है । इससे अनुमान किया जा सकता है कि छिपकली के कतिपय जीवप्रदेश उसकी कटी हुई पूछ में भी कुछ समय तक रहते हैं और बाद में नहीं रहते । वे प्रदेश कहाँ चले जाते हैं ? छिपकली के शरीर में ही चले जाते हैं, क्योंकि उनका संबन्ध सर्वथा विच्छिन्न नहीं हुआ था, कमल की नाल के तन्तुओं की तरह वे परस्पर में सम्बद्ध थे ।
शंका- ऐसा है तो मस्तक कट जाने पर भी मस्तक में स्थित प्रदेश शेष शरीर में क्यों नहीं चले जाते ? और मनुष्य उस पूछ-कटी छिपकली के समान जीवित क्यों नहीं रहता ?