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पोपिकानियुक्तिश्च अ० १ सू. ३७
त्रिविधवेदस्वरूपनिरूपणम् १५५ स्त्रीद्वयविषयाभिलाषो भवति धातुद्वयोदये सति मार्जितादि द्रव्याभिलाषवत्. कस्यचित्पुनः पुरुषेबेबाबिलाषो जायते इति भावः ॥३७॥
तत्त्वार्थनियुक्तिः-हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सादिनवविधे नोकषायवेदनीये वेदस्त्रिविधः प्रज्ञतः स्त्रीवेदः पुरुषवेदः नपुंसकवेदश्च तत्र वेदनं वेदोऽभिलाषविशेषः अयम्भावः मोहनीयबन्धो द्विविधः दर्शनमोहनीयः चारित्रमोहनीयश्च तत्र दर्शनमोहनीवधन्भस्त्रिविषः मिथ्यात्ववेदनीयसम्यक्त्ववेदनीयसम्यगमिथ्यात्ववेदनीयभेदात् । चारित्रमोहनीयबन्धश्च द्विविधः, कपायवेदनीय-नोकषायवेदनीयभेदात् । तत्र-कषायवेदनीयबन्धः षोडशभेदः क्रोध-मान माषा-लोभाः प्रत्येकम् अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यान-कषाय-प्रत्याख्यानकषाव-संज्वलनकषायभेदात् षोडशभेदा भवन्ति
नोकषायवेदनीयं नवविधम्, हास्यरत्यरतिशोकमयजुगुप्सापुरुषवेदस्त्रीवेदनपुंसकवेदभेदात् तत्र-पुरुषवेदमोहोदयात्- अनेकाकारासु स्त्रीष्वभिलाषो भवति उद्रिक्तश्लेमण आम्रफलामिलाषवत् तथा सङ्कल्पजास्वपि स्त्रिषु-अभिलाषः स्त्रीवेदमोहोदयात् पुरुषेष्वभिलाषो भवति एवं सङ्कल्पजेषु च पुरुषेष्वभिलाषः । लाषा उत्पन्न होती है । जैसे दो धातुओं के कुपित होने पर मार्जित आदि द्रव्यों की अभिलाषा होती है। किसी-किसी को सिर्फ पुरुषों के साथ रमण करने की इच्छा होती है ॥३७॥
तत्त्वार्थनियुक्ति-हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद; यह नोकषायवेदनीय कर्म के नौ भेद हैं । इन नौ भेदों में तीन वेदों की गणना की गई है। एक विशेष प्रकार के वेदन या अभिलाषा को वेद कहते हैं । आशय यह हैमोहनीय कर्म दो प्रकार का है--दर्शनमोहनीय और ३ चारित्रमोहनीय । दर्शनमोहनीय के तीन भेद हैं-१ मिथ्यात्वमोहनीय, २ सम्यक्त्वमोहनीय और सम्यग्मिथ्यात्वमोहनीय मिश्रमोहनीय । चारित्रमोहनीय कर्म के दो भेद हैं--कषायमोहनीय और नोकषायमोहनीय । इनमें से कषायमोहनीय के सोलह भेद हैं--क्रोध, मान, माया, और लोभ; और इन चारों के अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन के भेद से चार-चार भेद होने से सोलह भेद हो जाते हैं ।
___ नोकषायमोहनीय के नौ भेद हैं--हास्यादि पूर्वोक्त तीन वेदों की गणना इसी के अन्तर्गत है । इनमें से पुरुष वेदमोहकर्म के उदय से स्त्री की अभिलाषा उत्पन्न होती है, जैसे कफ के कुपित होने पर आम्रफल का सेवन करने की अभिलाषा होती है। इसी प्रकार स्त्री विषयक संकल्पजनित स्त्रियों के प्रति भी अभिलाषा पैदा होती है । जब स्त्रीवेद का उदय होता है तो पुरुष के प्रति अभिलाषा उत्पन्न होती है । साथ ही संकल्पज पुरुषों की भी अभिलाषा होती है।