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दीपिकानियुक्तिश्च अ० १ सू. ३०
जीवानां शरीरभेदकथनम् १२३ औदारिकापेक्षया वैक्रियस्य, वैक्रियापेक्षया-आहारकस्य, आहारकापेक्षया तैजसस्य, तैजसापेक्षया-कार्मणस्य च शरीरस्य बहुतरपुद्गलद्रव्यारब्धत्वेऽपि तेषामुत्तरोत्तरेषां सूक्ष्मपरिणामपरिणतत्वात् सूक्ष्मत्वमवगन्तव्यम् । तस्मात्तेषामापेक्षिकीसूक्ष्मता बोध्या । न तु-सूक्ष्मनामकर्मोदयजनिता सूक्ष्मता तेषां भवति ।
तेषु च पञ्चसु शरीरेषु कस्यचिज्जीवस्य आदितश्चत्वारि शरीराणि युगपद् भजनयाभवन्ति । कदाचित्कस्यचिद् द्वे शरीरे भवतः । कदाचित्कस्यचित्-त्रीणि शरीराणि, कदाचित्कस्यचित् चत्वारि शरीराणि भवन्ति, न तु-कदाचिदपि कस्यचित् पञ्चापि शरीराणि युगपद् भवन्तीति भावः ।
तथा च-एकस्य जीवस्य युगपत् तैजसकार्मणे वा भवतः १। तैजस-कार्मणौ-दारिकाणि वा भवन्ति २। तैजसकार्मणवैक्रियाणि वा भवन्ति ३। तैजस-कार्मणौ-दारिक-वैक्रियाणि वा भवन्ति ४। तैजस-कार्मणौ-दारिका-हारकाणि वा भवन्ति५-नापि वै ियाहारके द्वे युगपद् भवतः । एकस्य युगपद् लब्धिद्वयाऽभावात् , कार्मणन्तु-सर्वेषाँ भवत्येवेति भावः ॥३०॥ है। इस प्रकार औदारिक से वैक्रिय, वैक्रिय से आहारक, आहारक से तैजस और तैजस की अपेक्षा कार्मण शरीर सूक्ष्म है।।
यद्यपि शरीर अनुक्रम से उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं तथापि पुद्गलप्रदेशों की अपेक्षा औदारिक शरीर से वैक्रिय और वैक्रिय से आहारक शरीर असंख्यात गुणा है । आहारक की अपेक्षा तैजस शरीर में अनन्तगुणे अधिक प्रदेश हैं और तैजस की अपेक्षा कार्मण शरीर में अनन्तगुणे प्रदेश हैं । इस प्रकार बहुतर द्रव्यों से उत्पन्न होने पर भी उनका उत्तरोत्तर सूक्ष्म परिणमन है, अतएव वे सूक्ष्म कहे गए हैं।
इन पाँच शरीरों में से किसी जीव को एक साथ चार शरीर तक हो सकते हैं । किसी को दो, किसी को तीन और किसी को चार शरीर तक प्राप्त हो सकते हैं । ___(१) एक साथ एक जीव को दो शरीर हों तो तैजस और कार्मण होते हैं। दो शरीर सिर्फ विग्रहगति के समय ही होते हैं । (२) तीन शरीर एक साथ हों तो तैजस, कार्मण
और औदारिक होते हैं । यह तीन शरीर ऋद्धिहीन तिर्यंचों और मनुष्यों में पाये जाते हैं। (३) अथवा तीन शरीर तैजस, कार्मण और वैक्रिय होते हैं। जो देवगति और नारक गतिके जीवों को प्राप्त होते हैं । (४) चार हों तो तैजस, कार्मण, औदारिक तथा वैक्रिय हो अथवा (५) तैजस, कार्मण, औदारिक तथा आहारक, हों । यह चार शरीर वैक्रिय लब्धि या आहारक लब्धि वाले जीव को होते हैं।
एक जीव में एक साथ पाँचों शरीर नहीं होते और न वैक्रिय और आहारक शरीर एक साथ पाये जा सकते हैं, क्योंकि एक साथ दोनों-वैक्रिय और आहारक लब्धियाँ नहीं हो सकतीं । कार्मण शरीर तो प्रत्येक संसारी जीव को होता ही है ॥३०॥