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भावना
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अपागं पिय सरणं खमादि-भावेहि परिणदं होदि । तिव्यकसायाविट्ठो अयाणं हणदि अपेण ॥ ११ ॥ ३१
३ संसार
एक चजति सरीरं अण्णं गिव्हेदि णवणवं जीवो ।
पुणु अष्णं अण्णं हिदि मुंचेदि वहुवारं ॥ १२ ॥ ३२ एक जं संसरणं णाणादे हेतु हवदि जीवस्स । सो संसारो भणदि मिच्छक सायेहिं जुत्तस्स ॥ १३ ॥ ३३ इ संसारं जाणिय मोहं सव्वायरेण चइऊण । तं झायह ससहावं संसरणं जेण णासेइ ॥ १४ ॥ ७३
४ एकत्व
इको जीवो जायदि इक्को गन्मम्मि गिहदे देहं ।
इक्की बाल- जुवाणो इक्को बुढो जरागहिओ ॥ १५ ॥ ७४ इक्को रोई सोई इक्को तप्पेइ माणसे दुवखे ।
इको मरदि वराओ णरयदुहं सहदि इक्को वि ॥ १६ ॥ ७५
सव्वायरेण जाणह इक्कं जीवं सरीरदो भिण्णं । अम्हि दु मुणिदे जीवे होइ असेसं खणे हेयं ॥ १७ ॥ ७९
५ अन्यत्व
अणं देहं हिदि जणणी अण्णा य होदि कम्मादो | अण्णं होदि कलन्तं अण्णो वि य जायदे पुत्तो ॥ १८ ॥ ८० एवं बाहिरदव्वं जादि रूवा हु अप्पणो भिण्णं । जाणतो वि हु जीवो तत्थेव य रच्चदे मूढो ॥ १९ ॥ ८१ जो जाणिऊण देहं जीवसरूपादु तच्चदो भिष्णं । अप्पाणं पिय सेवदि कज्जकरं तस्स अण्णत्तं ॥ २० ॥ ८२
६ अशुचिल सयलकुहियाण पिंडं किमिकुलकलियं अउव्वदुग्गंधं । मलमुत्ताणं गेहं देहं जाणेह असइमयं ॥ २१ ॥ ८३
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