SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar धौ ग 100000003000 उत्तमखम-मद्दवज्जव-सच्च-सउच्चं च संजमं चेव । तव-तागमकिंचण्हं बम्हा इदि दसविहो धम्मो ॥१॥ ७० कोहुप्पत्तिस्स पुणो बहिरंगं जदि हवेदि सक्खादं । ण कुणदि किंचि वि कोहं तस्स खमा होदि धम्मो त्ति ॥ २ ॥ कुल-रूव-जादि-बुद्धिसु तव-सुद-सीलेसु गारवं किंचि । जो ण वि कुव्वदि समणो मद्दवधम्म हवे तस्स ॥ ३ ॥ मोत्तण कुडिलभाव णिम्मलहिंदयेण चरदि जो समणो । अज्जवधम्मं तइयो तस्स दु संभवदि णियमेण ॥ ४ ॥ परसंतावयकारणवयणं मोत्तण सपरहि दवयणं । जो बददि भिक्खु तुइयो तस्स दु धम्मो हवे सच्चं ॥ ५ ॥ करवा भावणिवित्तिं किच्चा बेग्गभावणाजुत्तो। जो वददि परममुणी तस्स दु धम्मा हवे सौच ॥ ६ ॥ बद-समिदि-पालणाए दंडच्चाएण इंदियजएण । परिणममाणस्स पुणो संजमधम्मो हवे णियमा ॥ ७ ॥ विसयकसायविणिग्गहभावं काऊण झाणसिज्झीए। जो भावइ अप्पाणं तस्स तवं होदि णियमेण ॥ ८ ॥ णिव्वेगतियं भावइ मोहं चइऊण सव्वदव्वेसु । जो तस्स हवे च्चागो इदि भणिदं जिणवरिंदहिं ॥ ९॥ होऊण य णिस्संगो णियभावं णिग्गिहित्तु सुहदुहदं । णिदेण दु वदि अणयारो तस्स किंचण्हं ॥ १० ॥ सव्वंगं पेच्छंतो इत्यीणं तासु मुयदि दुब्भावम्' । सो बम्हचेरभावं सुक्कदि खलु दुद्धरं धरदि ॥ ११ ॥ ८० कुन्दकुन्दकृत बारस अनुवेक्खा ७०-८० For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy