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उत्तमखम-मद्दवज्जव-सच्च-सउच्चं च संजमं चेव । तव-तागमकिंचण्हं बम्हा इदि दसविहो धम्मो ॥१॥ ७० कोहुप्पत्तिस्स पुणो बहिरंगं जदि हवेदि सक्खादं । ण कुणदि किंचि वि कोहं तस्स खमा होदि धम्मो त्ति ॥ २ ॥ कुल-रूव-जादि-बुद्धिसु तव-सुद-सीलेसु गारवं किंचि । जो ण वि कुव्वदि समणो मद्दवधम्म हवे तस्स ॥ ३ ॥ मोत्तण कुडिलभाव णिम्मलहिंदयेण चरदि जो समणो । अज्जवधम्मं तइयो तस्स दु संभवदि णियमेण ॥ ४ ॥ परसंतावयकारणवयणं मोत्तण सपरहि दवयणं । जो बददि भिक्खु तुइयो तस्स दु धम्मो हवे सच्चं ॥ ५ ॥ करवा भावणिवित्तिं किच्चा बेग्गभावणाजुत्तो। जो वददि परममुणी तस्स दु धम्मा हवे सौच ॥ ६ ॥ बद-समिदि-पालणाए दंडच्चाएण इंदियजएण । परिणममाणस्स पुणो संजमधम्मो हवे णियमा ॥ ७ ॥ विसयकसायविणिग्गहभावं काऊण झाणसिज्झीए। जो भावइ अप्पाणं तस्स तवं होदि णियमेण ॥ ८ ॥ णिव्वेगतियं भावइ मोहं चइऊण सव्वदव्वेसु । जो तस्स हवे च्चागो इदि भणिदं जिणवरिंदहिं ॥ ९॥ होऊण य णिस्संगो णियभावं णिग्गिहित्तु सुहदुहदं । णिदेण दु वदि अणयारो तस्स किंचण्हं ॥ १० ॥ सव्वंगं पेच्छंतो इत्यीणं तासु मुयदि दुब्भावम्' । सो बम्हचेरभावं सुक्कदि खलु दुद्धरं धरदि ॥ ११ ॥ ८०
कुन्दकुन्दकृत बारस अनुवेक्खा
७०-८०
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