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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपनी ओर से 'तत्त्व-समुच्चय' ग्रन्थ पाठकों के सन्मुख रखते हुए हमें हर्ष हो रहा है. जैन तत्त्वज्ञान और आचार की विशेषताओं को संक्षेप में और सरल भाषा में बतानेवाले ऐसे ग्रन्थ की कमी प्राय: अनुभव की जा रही थी. अपने अध्यापन में आने वाली कठिनाइयों के कारण तो डा० हीरालाल जी ने इस कमी को काफी तीव्रता से अनुभव किया. तत्त्व-सम च्चय में जैन धर्म के प्राचीन प्राकृत भाषा के ग्रंथों की गाथाओं का संकलन किया गया है. जैनधर्म का तत्त्वज्ञान पहले पहल प्राकृत भाषा में हो लिपिबद्ध किया गया था. गाथाओं का संकलन दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के ग्रन्थों से किया गया है और जहाँ कहीं मान्यता भेद का प्रसंग आया है वहाँ दोनों सम्प्रदायों को मान्यता का उल्लेख कर दिया है. प्राकृत भाषा न समझने वालों के लिए हिन्दी अनुवाद भी दे दिया है. बो. ए. और एम. ए. के विद्यार्थियों की सुविधा के लिए शब्द-कोष, ग्रन्थ व ग्रंथकारों का ऐतिहासिक परिचय भी दिया गया है. प्रारम्भ में जैनधर्म के विकासक्रम और प्राकृत भाषा की महत्ता पर भी डा० साहब ने काफी प्रकाश डाला है. इस तरह यह ग्रंथ जिज्ञासुओं, विद्यार्थियों, स्वाध्यायियों आदि सब के उपयोग का बन पड़ा है. इस महत्वपूर्ण सेवा के लिए भारत जैन महामंडल डा० साहब का अत्यन्त ऋणी है. अत्यन्त कार्यव्यस्त रहते हुए भी ग्रंथ को सर्वांगसुन्दर बनाने के लिए डा० साहब ने समय निकाल कर जो श्रम किया है वह तो कभी भुलाया ही नहीं जा सकता. प्रकाशन में जो अत्यधिक विलम्ब हुआ, उसका एक कारण यह भी रहा कि डा० साहब इसे सब दृष्टियों से उपयोगी बनाना चाहते थे. आपके सुप्रयत्न से यह ग्रंथ नागपुर विश्वविद्यालय में पाठ्य-ग्रंथ स्वीकार कर लिया गया है. __ यह ग्रंय राजेन्द्र-स्मति ग्रंथ-माला की ओर से प्रकाशित हो रहा है. यह ग्रंथ-माला श्री रांका परिवार ने श्री रिषभदासजी रांका के ८ वर्षीय पुत्र स्व० राजेन्द्र को स्मृति में स्थापित की है. हमारा विचार पहले इसका मूल्य दो रुपए रखने का था, पर उपयोगी सामग्री से पृष्ठ संख्या बढ़ जाने के कारण तीन रुपया करना पड़ा है. आशा है इस उपयोगी ग्रंथ का स्वागत गा. वर्धा । --प्रकाशक १० नवम्बर १९५२ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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