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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : १ लोक-स्वरूप Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भव्वजणानंदयरं वोच्छामि अहं तिलोय पण्णत्तं । भिर भत्ति पसादिद-बर-गुरु-चलणाणुभावेणं ॥ १ ॥ १-८७ जग सेदि-घणपमाणो लोयायासो सपंचदव्वरिदी | एस अणंताणंतालोयायासस्स बहुमज्झे ॥ २ ॥ १-९१ आदि-हिणेण हीणो पगदि- सरूत्रेण एस संजादो । जीवाजीव समिद्धो वहाबलोइओ लोओ ॥ ३ ॥ १-१३३ धम्मम्म बिद्धा गदिरगदी जीव पोगलाणं च । जत्तिय - मेत्तायासे लोयाआसो स णादव्वो ॥ ४ ॥ १-१३४ लोक-३ हेमिलोयायारो बेत्तासणसणिहो सहावेण । मज्झिम- लोयायारो उब्भियमुरअद्धसारिच्छो ॥ ५ ॥ १-१३७ उबरिम- लोयायारो उब्भियमुरवेण होइ सरित्तो । संठाणो दाणं लोयाणं एहि साहेमि ॥ ६ ॥ १-१३८ हेडिम - "ज्झिम- उबरिम- लोउच्छेहो कमेण रज्जुवो । सत्तय जोयणलक्खं जोयण लक्खुण सगरज्जू ॥ ७ ॥ १-१५१ नरक -७ इह रयण-सक्करा-वालु-पंक- धूम-तम-महातमादिपहा । मुखद्धम्म महाओ सत्त च्चिय रज्जु अंतरिया ॥ ८ ॥ १-१५२ धम्मा-सा मेघा - अंजण रिट्ठाण उच्भमघवीओ | माघत्रिया इय ताणं पुढवीणं गोत्तणामाणि ॥ ९ ॥ १-१५३ चुलसीदी लक्खाणं णिरयबिला होंति सव्त्र- पुढवीसुं । पुर्व पडि पत्ते ताण पमाणं परूवेमो ॥ १० ॥ २-२६ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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