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रचनाओं का उल्लेख किया है या उनसे अपना परिचय व्यक्त किया है। ये सब ग्रंथकार सन् ७०० से पूर्व हो चुके हैं। अतएव हरिभद्र का काल सन् ७०० और ७७५ ईस्वी के बीच सिद्ध होता है।
श्रावक प्रज्ञप्ति में कुल ४०१ प्राकृत गाथाएं हैं जिनमें क्रमशः श्रावक के अहिंसादि बारह व्रतों का विधिवत् वर्णन किया गया है ।
गृहस्थ-धर्म [२] यह संकलन वसुनन्दि कृत श्रावकाचार में से किया गया है । इस ग्रंथ में ५४८ गाथाएं हैं जिन में क्रमशः श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं अर्थात् दों का विस्तार से वर्णन किया गया है । ग्रंथ की अन्तिम ७ गाथाओं में कर्ती ने अपना परिचय व ग्रंथ-परिमाण का परिचय इस प्रकार दिया है--
आसी ससमय-परममयविद् सिरि कुंद कुंदसंताणे । मध्वयण-कुमुय-वणसिसिस्यरो सिरिणदि णामेण ।। ५४२ ।। कित्ती जस्मेंदुसुब्मा सयलभुवणमझे जहेच्छं भमित्ता णिच्चं सा सज्जणाणं हिययवयणसोए णिवासं करे । जो सिद्धं तंबुरामि सुणयतरणमासेज लीलावतिण्णो वणेउं को समत्यो सयलगुणगणं सेवियतो वि लोए । ५४३ ॥ मिस्सो तस्स जिणिदसासणरओ सिद्धंतपारंगओ खंती-मद्दव-लाह-वाइ-दसहा धम्मम्मि णिच्चोज्जओ । पुणेदुज्जलकित्तिपूरियजओ चारित्तलच्छीहरी संजाओ णयणंदि णाममुणिणो भव्वासयाणंदओ ।। ५४४ ।। सिस्मो तस्स जिणागम-जलणिहिवेला-तरंग-धुयमाणो । संजाओ सयलजए विक्खाओ णेमिचंदो त्ति ॥ ५४५ ।। तस्स पसाएण मए आयरियपरंपरागयं एयं । वच्छल्लायररइयं भवियाणमुवासयज्झयणं ॥ ५४६ ॥ जं किं पि एस्थ भाणियं अयाणमाणेण पवयणविरुद्धं । खमिऊण पवयणाणू सोहित्ता तं पयासंतु ॥ ५४७ ॥ छच्च सया पण्णासुत्तराणि ए यस्स गंधपरिमाणं ॥ वसुणंदिणा णि बद्धं वित्यरियव्वं वियहिं ।। ५४८ ।।
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