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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० संगासक्त (संगासत्त)-गृहस्थ ७-४५ संग्रहनय (संगह) - दो प्रकार का १५-३० सचित्तआहार - प्रतिवद्ध, उपभोग परिभोग परिमाणवत का आतचार २-२४ सचित्तगत चौर्य - २-१४ सचित्तत्याग - पाँचवीं प्रतिमा ३-२ सचिचविनिवृति (सचित्त विणिवित्ति) - पाँचवीं प्रतिमा ३-२६ संज्वलन (संजलण) ११-१५ संज्ञा ( सण्णा) - तेरहवीं मार्गणा १२-६१ संज्ञी (सणी) १२-६२ सत्कार-पुरस्कार-परीषह ८-३८,३९ सचानाहक ( सत्ताग्गाहअ)- द्रव्यार्थिक नय का भेद १५-१३ सत्य (सच्च) - व्रत प्रतिमा का अंग ३-१२ - महाव्रत ५-६ - धर्मोग ६-५ सद्भूतनय (सन्भूय) - नयका भेद १५-९ संधान (संधाण) - अचार (हिं.) लोणचे (मराठी) ३-९ सनत्कुमार (सणंकुमार)-चौथे चक्रवर्ती १-५० संनिधि (सन्निहीं) - मुनि के लिए वर्ण्य ४-३ सन्मति - दूसरे कुलकर व मनु पृ. ७ टि. सप्तभंगी (सत्तभंगी) १४-८ संप्रोक्षण (संपुच्छण) - मुनि के लिये वयं ४-३ संभावना (संभावण)- सत्य का भेद १२-१५ संभव (संभव) - तीसरे तीर्थकर १-४७ समता (समदा) - प्रथम आवश्यक ५-२३ समन (समणो) - संज्ञी जीव १२-६३ समाभिरूढ नय १५-३६ समारम्भ (समारम्भ) - मुनि के लिये वयं ४-४ समिति ( समिदि)- मुनि की पांच ५.२,७-३० - भाव संवर का भेद ९-२८ समुच्छिन्नक्रिया (समुच्छिन्नकिरिया) - शुक्ल ध्यान का भेद १३-२३,३१ समुद्घात (समुग्घदो) - आत्म प्रदशों को फैलानेवाले जीव २-६५ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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