SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योग ( जोग) - तीन प्रकार का ९-२३ - चौथी मार्गणा १२-९ योजन ( जोयण ) - देश-प्रमाण १-२९ रज्जु ( रज्जु ) - मध्यम लोक के विस्तार प्रमाण माप १-७ रत्नप्रभा ( रयणपहा ) - प्रथम नरक १-८ रम्यक (रम्म) - जम्बूद्वीप का ५ वां क्षेत्र १-३१ रस ( रस ) - पांच प्रकार का ९-७; १२-५ रहस्याभ्याख्यान ( रहसब्भक्खाण) - सत्याणुव्रत का अतिचार २-१३ राजपिण्ड ( रायपिंड ) - मुनि के लिए वर्ण्य ४-३ रात्रिभुक्ति ( राइभुत्ती ) - छठवीं प्रतिमा ३-२ (राइभुत्त)- मुनि के लिए त्याज्य ४-२ राम-परशुराम - ८ वें बलदेव १-५२ रावण ( रावणअ)-८ वे प्रतिनारायण १-५४ रुक्मि ( सम्मि ) - रम्यक क्षेत्र के उत्तर में कुलाचल १-३२ रुद्र ( रुद्द)- ३ रे रुद्र १-५५ - रौद्र कर्म और अधर्म व्यापार में संलग्न ११ प्रसिद्ध पुरुष १-५६ रूप ( रूव ) - चक्षुइन्द्रिय का विषय १२-५ - सत्य वचन भेद १२-१५ वेति ( रेवदी) - नक्षत्र १-१८ रोग-परीषह ८-३२, ३३ रोम लवण ( रोमा-लोण ) - लवण-विशेष ४-८ रोहिणी - नक्षत्र १-१६ रौद्र ( रुद्द ) - ध्यान-भेद १३-८ लब्धि ( लद्धि )- नौ प्रकारकी ११-२६ लवण ( लोण ) - मुनि के लिए वयं ४-८ लान्तव (लतव )- ६ ठा स्वर्ग १-२० लाभान्तराय - अन्तराय कर्म का भेद १०-१५ लेश्या (लेस्सा) - दसवीं मार्गणा १२-४१ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy