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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४७ एकत्व भावना - ७--२ एकत्ववितर्कवीचार ( सवियस्केगत्त-वीचार ) -- ज्यान विशेष १३ --२७, २८ एकभक्त -- मुनिका एक मूलगुण ५--३५ एकान्त ( एयन्त ) -- मिथ्यात्व का भेद ११-४: १५-३ एकन्द्रिय जीव ९-९ पवंभूत ( एवं भूय ) - नय १५-६ एपणा समिति (एमणा ) - उद्गमादि ४६ दोष रहित ५ --१३ गरावत ( एरावद ) - जम्बूद्वीप का सातवाँ क्षेत्र १ -- ३१ ऐशान ( ईसाण ) - दुसरा स्वर्ग १-२०, २१ औदारिक ( उराल) - परदारा का एक भेद २-१६ ( ओरालिय) - काय योग का एक भेद १२-२० औदेशिक ( उदसिय ) - मुनि के लिए, त्याच्य भोजन ४-२ कंद - सचित्त, मुनि के लिए वर्ध्य ४-७ कंदर्प ( कंदम) - अनर्थदण्डवत का अतिचार २-२९ कन्या (कन्ना ) -- सत्यागुबत का अतिचार २-११ कर्कश ( ककस ) -- भाषा-भेद '.-१२ कत्ती ( कत्ता) - ५-६ कर्म (कम्म) -- ७-२४; आट भेद १०-१; नोकषाय द्रव्यनिक्षेप भेद १६--७ कर्माम्रक (कम्मासव) - ९-२९ कर्मोपाधिनिरपेक्षनय (कम्मोवाहिणिरवेक्खो ) -- शुद्धद्रव्यार्थिकनय का भेद कर्मोपाधिसापेक्ष नय (कम्मागोवाहिमावेग्वो) - अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय का भेद १५-१६ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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