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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar निक्षेप कार्य होने पर अर्थात् व्यवहार चलानेके हेतु युक्तियों में सुयुक्तिमार्गानुसार जो अर्थका नामादि चार प्रकारसे आरोप किया जाता है वह न्याय शास्त्रमें निक्षेप कहलाता है॥१॥ द्रव्यका स्वभाव नानाप्रकारका है। अतएव जिस स्वभावकी अपेक्षा हो उसीके निमित्तसे उस एक ही द्रव्यको चार भेदरूप किया जाता है ॥२॥ नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव, ये चार निक्षेप जानिये । किसी वस्तुका कोई नाम रखना यह नाम निक्षेप है जो दो प्रकारका प्रसिद्ध है ।।३।। १. नाम निक्षेप मोह कर्मका, व अज्ञानका तथा अन्तराय कर्मका विनाश करने रूप गुणा नुसार अथवा पूजने योग्य होनेके कारण केवली भगवान्का 'अरिहंत' यह गुण. नाम है । अन्यथा, जो संज्ञा, वस्तुके गुणकी अपेक्षा न कर, केवल लोक व्यवहारार्थ रख ली जाती है, वह रूढ नाम होता है; जैसे घोड़ा एक प्राणिविशेष ॥४॥ २. स्थापना निक्षेप जहां एक वस्तुका किसी अन्य वस्तुमें आरोप किया जाता है, वहां स्थापना निक्षेप होता है । वह दो प्रकारकी है-एक साकार स्थापना और दूसरी निराकार स्थापना । कृत्रिम व अकृत्रिम अरिहंतकी प्रतिमा साकार स्थापना है, तथा किसी भी अन्य पदार्थमें अरिहंतकी स्थापना करना निराकार स्थापना है ॥५॥ ३. द्रव्य निक्षेप जब बस्तुकी वर्तमान अवस्थाका उलंघन कर उसको भूतकालीन या भावि स्वरूपानुसार व्यवहार किया जाता है तब उसे द्रव्य निक्षेप कहते हैं। उसके दो भेद कहे गये हैं आगम और नोआगम। अरहंतके कहे हुए शास्त्रका जानकार जिस समय उस शास्त्र में अपना उपयोग नहीं लगा रहा उस समय वह आगम द्रव्यनिक्षेप से अरहंत है। नोआगम द्रव्यनिक्षेपके तीन भेद हैं--ज्ञायक-शरीर, भावि और कर्म । जहाँ वस्तुके ज्ञाताके शरीरको उस वस्तुरूप माना जाय वहाँ शायक शरीर नोआगम द्रव्य निरक्षेप है-जैसे राजनीतिज्ञके मृतशरीरको देखकर कहना कि राजनीति मर गई । ज्ञायक शरीर भी भुत, वर्तमान व भविष्यकी अपेक्षा तीन प्रकारका तथा भूतज्ञायक शरीर च्युत, त्यक्त और च्यावित रूपमे पुनः For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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