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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्या न जैसे अभेद्य कवचसे सुरक्षित योद्धा संग्रामके अग्रभागमें युद्ध करता हुआ भी शत्रुओं द्वाग अलंध्य होता है, व प्रहरणादि क्रियामें समर्थ होकर उन वैरियोंको जीत लेता है, उसी प्रकार कर्मों के क्षय करनेमें प्रवृत्त हुआ साधु-क्षपक धैर्यरूपी कवचसे सुसज्जित होकर परीषहरूपी शत्रओंके लिये अलंध्य हो जाता है, तथा ध्यानमें समर्थ होकर उन वैरियोंको जीत लेता है ।। १-२ ॥ ___ध्यानमें तल्लीन पुरुष सदैव राग, द्वेष, इन्द्रिय, भय व कषायोंको जीत लेता है, तथा राते, अरति व मोहका विनाश कर देता है ॥ ३ ॥ धर्मध्यान चार प्रकारका होता है और शुक्लध्यान भी चार प्रकारका होता है। ये ध्यान दुखों को दूर करनेवाले हैं। अतएव संसारके जन्म, जरा व मरण आदि दुखोंसे भयभीत हुआ पुरुष इन दोनों ध्यानोका अभ्यास करता है ।।४।। अशुभध्यान क्षुधा तृषा आदि परीषहोंसे संतापित होनेपर भी आर्त और रौद्र इन दो ध्यानों में कभी प्रवृत्त न होवे, क्योंकि भले प्रकार तपश्चर्या करनेवाले साधुको भी आर्त और रौद्रध्यान नष्ट कर डालते हैं ।।५।। १. आर्तध्यान आर्तध्यान चार प्रकारका होता है और रौद्रध्यान भी चार प्रकारका है । संस्तर अर्थात् शैयागत क्षपक ध्यानके इन सब भेदोंको पूर्णरूपसे जान ले। अमनोज्ञ अर्थात् अनिष्ट की प्राप्तिसे, इष्टके वियोगसे, परीषह अर्थात् दुक्खकी वेदनासे एवं भोगों की अभिलाषासे जो कषाययुक्त भाव होता है वही संक्षेपमें चार प्रकारका आतध्यान कहा गया है ॥६-७॥ २. रौद्रध्यान स्तैनिक्य अर्थात् चोरी, मृषा अर्थात् झूठ, और स्वरक्षण अर्थात् अपनी धनसम्पत्तिकी रक्षा, इन कार्यों में तथा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति एवं द्वीन्द्रियादि त्रम इन छह कायके जीवोंका घात करनेमें जो कषाययुक्त परिणाम होते हैं वही संक्षेपसे रौद्र ध्यान कहा गया है ।। ८ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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