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Achar
गुणस्थान
अनिवृत्तिकरण परिणाम कहते हैं । और अनिवृत्तिकरण का जितना काल है उतने ही उसके परिणाम हैं। इसलिये उसके कालके प्रत्येक समयमें अनिवृत्तिकरणका एक ही परिणाम होता है। तथा ये परिणाम अत्यन्त निर्मल ध्यानरूप अमिकी शिखाओंकी सहायतासे कर्भवनको भस्म कर देते हैं ।२०-२१।।
१० सूक्ष्मसाम्पराय जिस प्रकार धुले हुए केशरी वस्त्रमें सूक्ष्म लालिमा रह जाती है, उसी प्रकार जो अत्यन्त सूक्ष्म राग ( लोभ कषाय) से युक्त है उसको सूक्ष्ममाम्पराय नामक दशम गुणस्थानवर्ती कहते हैं ॥ २२ ।। ।
चाहे उपशमश्रेणीका आरोहण करनेवाला हो अथवा क्षपकश्रेणीका आरोहण करनेवाला हो, परन्तु जो जीव सूक्ष्म लोमके उदयका अनुभव कर रहा है वह दशमें गुणस्थानवर्ती जीव यथाख्यात चारित्र्यसे कुछ ही न्यून रहता है ॥२३॥
११ उपशांत मोह निर्मला फलसे युक्त जलके समान, अथवा शरदऋतुमें सरोवरके जलके समान जिसके मोहनीय कमके उपशमसे उत्पन्न होनेवाले निर्मल परिणाम हो जाते हैं वह ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती उपशान्त कषाय होता है ॥२४॥
१२ क्षीणमोह जिस निर्गन्धका चित्त मोहनीय कर्मके सर्वथा क्षीण होनेसे स्फटिकके निर्मल पात्रमें रक्खे हुए जलके समान निर्मल हो गया है उसको वीतराग देवने, श्रीणकषायनामक बारहवें गुणस्थानवर्ती कहा है ।।२५।।
१३ सयोगकेवली जिसका केवलज्ञानरूपी सूर्यको किरणों के समूहसे अज्ञान अन्धकार सर्वथा नष्ट हो गया हो, और जिसको नव केवल लब्धियों के ( क्षायिक सम्यकत्व, चरित्र, ज्ञान दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य ) प्रकट होनेसे 'परमात्मा" यह संज्ञा प्राप्त हो गई है, वह इन्द्रिय आलोक आदिकी अपेक्षा न रखनेवाले ज्ञान-दर्शनसे युक्त होनेके कारण केवली, और काययोगसे युक्त रहने के कारण सयोगी, (तथा घातिकर्मों का विजेता होने के कारण ) जिन कहा जाता है, ऐसा अनादिनिधन आर्ष आगममें कहा है ॥२६-२७॥
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