________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
(७५)
का चौमासा, वहां किया. चौमासेमें “सूयगडांग सूत्र वृत्ति," और " वासुपूज्य स्वामी चरित" वांचते रहे. इस चौमासेमें श्रावकोंके आग्रहसे " मात्रपूजा" बनाई. चौमासे बाद भी यहां जानुओंके (धुंटणोंके) दरदसे, कितनाक समय रहना पडा.तिस समयमें नूतन दीक्षित साधुओंकोबृहद् योगोदहन कराया, और पट्टीमें जाके छेदोपस्थापनीय चारित्रका संस्कार दिया. बाद पट्टीसें विहार करके जीरामें पधारे. और संवत् १९५१ का चौमासा, वहां किया. इसी चौमासेमें, “तस्वनिर्णय प्रासाद” नामा ग्रंथ पूर्ण किया, जो ग्रंथ, इस समय अस्मदादिकोंके दृष्टिगोचर हो र. हाहै; और जिस ग्रंथको हाथ में लेकर, ग्रंथकर्ताके जीवन चरितामृतका पान कर रहे हैं.
इस ग्रंथकी समाप्ति अनंतर श्रीमहाराजजी साहिबने, “महाभारत" का आयोपांत स्वाध्याय करा. "ऋग्वेदादि चारों वेदों का, तथा"ब्राह्मण भाग" जितने छपेहुए मिले तिन सर्वका स्वाध्याय तो, श्रीमहाराजजीने प्रथमसेंही कराथा. स्वमत (जैनमत) विना अन्य मत मतांतरोंका भी, श्रीमहाराजजी साहिबको पूर्ण ज्ञान था. जो इनके बनाये “जैनतत्त्वादर्श," "अज्ञान तिमिर भास्कर," और " तत्त्वनिर्णय प्रासाद" वगैरह ग्रंथोंके देखनेसें, साफ साफ मालूम होताहै. महाभारतका स्वाध्याय किये बाद, पुराणों का स्वाध्याय भी अनुक्रमस करा.
जीरेके चौमासेसे पहिले जोरेमें ऐसा अद्भुत बनाव बना कि, जिसमें पंजाब देशके श्रावकोंको अतीव आनंदामृतका स्नान हुआ. क्योंकि, इस पंजाब देशमें आजतक कोई भी यथार्थ सनातन जैनधर्मकी वृत्तिवाली “साध्वी " न थी. सो देश मारवाड शहेर "बीकानेर” से, साधी श्री "चंदनश्रीजी,” और “छगनश्रीजी,१ विहार करके रस्ते में अनेक प्रकारके कष्ट सहन करके जीरामें पधारी. और श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरजीके दर्शनामृतके स्नानसे, मार्गका सर्व परिश्रम भूलायके, पंजाबके श्राविका संघको अतीव सहायक हुईं. इनके साथ एक बाई बीकानेरसे दीक्षा लेनेकेवास्ते आई हुई थी, तिसको दीक्षा दीनी, और “ उद्योतश्रीजी नाम रखा. चौमासेबाद जीरासे विहार करके श्रीमहाराजजी साहिब, पट्टीमें पधारे. और संवत् १९५१ माघ सुदि त्रयोदशीके दिन, गुजरात देशसे आये हुये स्फाटिक जिनबिंब, और पंजाब देशके श्रावकोंके कितनेक नूतन जिनबिंब मिलाके (५०) जिनबिंबकी, अंजनशिलाका करी. तथा नवीन जिन मंदिरमें "श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी" को स्थापन किये. इस पूर्वोक्त क्रिया कराने वास्ते भी, वेही श्रावक आये थे. प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्ण होने के बाद, विहार करके लाहोर तरफ पधारनेका इरादा, श्रीमहाराजजी साहिबका था. परंतु शहेर अंबालाके श्रावक नानकचंद, वसंतामल्ल, उद्दममल्ल, कपूरचंद, भानामल्ल, गंगाराम, वगैरह प्रतिष्ठा महोत्सवपर आये थे. उनोंने विनती करी कि, “महाराजजी साहिब ! हमारे शहेरमें आपकी कृपासे जिन मंदिर तैयार होगया है. सो कृपानाथ ! कृपा करके आप शहेर अंबालामें पधारो, और प्रतिष्ठा करके हमारे मनोरथ पूर्ण करो. हमारी यही अभिलाषा है कि, हमारे जीते जीते प्रतिष्ठा हो जाये, कालका कोई भरोसा नहीं, खबर नहीं कलको क्या होगा ? इस वास्ते हम अनाथोंकी प्रार्थना जरुर अंगीकार करके, हमको सनाथ करने चाहिये." यह सुनकर श्रीमहाराजजी साहिबने पूर्वोक्त विचार बदलके, शहेर अंबालाके तरफ विहार कर दिया. और अनुक्रमे शहेर अंबालामें पधारे. यहां जुनागढके " डाक्टर त्रिभोवनदासमोतीचंद शाह, एल. एम."ने आके, श्रीमहाराजजीकी दूसरी आंखका मोतीया निकाला था. इस हेतुसे संवत् १९५२ के चौमासेमें श्री महाराजजी साहिब व्याख्यान नहीं करते थे. पर्युषण पर्वके
For Private And Personal