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(६८) (८) श्री आर्यमुहस्ति सूरि (१०) श्री इंद्रदिन सूरि
(७) श्री स्थूलभद्र स्वामी
श्रिी सुस्थित सूरि तथा (१) श्री मुप्रतिबुद्ध मूरि (११) श्री दिन्न मूरि (१३) श्री वन स्वामी (१५) * श्री चंद्र सूरि (१७) श्री वृद्धदेव सूरि
श्री मानदेव सूरि श्री वीर सूरि श्री देवानंद मूरि श्री नरसिंह मूरि
श्री मानदेव मूरि (२९) श्री जयानंद सूरि
श्री यशोदेव सूरि (३३) श्री मानदेव मूरि (३५) श्री उद्योतन मरि (३७) श्री देव सूरि
श्री यशोभद्र सूरि तथा
(१२) श्री सिंहगिरि मूरि (१४) श्री वनसेन सरि (१६) श्री सामंतभद्र सूरि (१८) श्री प्रद्योतन सरि (२०) श्री मानतुंग मूरि (२२) श्री जयदेव सूरि
श्री विक्रम सूरि (२६) श्री समुद्र सूरि (२८) श्री विबुधप्रभ सूरि (३०) श्री रविप्रभ सूरि (३२) श्री प्रद्युम्न सूरि (३४) श्री विमलचंद्र सूरि (३६)+श्री सर्वदेव सूरि (३८) श्री सर्वदेव सूरि (४०) श्री मुनिचंद्र मूरि
(३९) श्री नेमिचंद्र सूरि
(४१) श्री अजितदेव सूरि (४२) श्री विजयसिंह मूरि
(श्री सोमप्रभ मूरि तथा (४४) x श्री जगच्चंद्र सूरि
श्री मणिरत्न सूरि (४५) श्री देवेंद्र सूरि
(४६) श्री धर्मघोष सूरि (४७) श्री सोमप्रभ सूरि
(४८) श्री सोमतिलक सूरि श्री देवसुंदर सूरि (५०) श्री सोमसुंदर सूरि (५१) श्री मुनि सुंदर सूरि (५२) श्री रत्नशेखर सूरि (५३) श्री लक्ष्मीसागर सूरि । (५४) श्री सुमतिसाधु सूरि (५५) श्री हेमविमल सूरि (५६) श्री आनंदविमल सूरि
(५७) श्री विजयदान सूरि (५८) श्री हीरविजय सूरि । इनोंने सरि मंत्रका कोटि जाप किया,इस वास्ते निग्रंथ गच्छका “कौटिक गच्छ” नाम प्रसिद्ध हुआ. * इनोंसें कौटिक गच्छका नाम " चंद्र गच्छ” पडा. --इनोंसें'वनवासी गच्छ"प्रसिद्ध हुआ. +इनोंसें निग्रंथ गच्छका पांचमा नाम “वडगच्छ” पडा. x इनोसें वडगच्छका नाम तपगच्छ प्रसिद्ध हुआ.
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