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आचार्य श्री १००८ श्रीमद् कमल विजयसरि.
श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वर ( आत्मागमजी) के पाटधारी. मल-पंजाबी-ब्राह्मण.-सिरसामें यति किशोरचंदजीके पास रहतेथे. दुढक दक्षिा, सं० १९३० में श्री विश्नचंदजाके पास ली. नाम-रामलालजी.
संवेगी दीक्षा-अहमदाबाद में--सं० १९३२. और श्रीमन आत्मारामजीक बडे शिष्य श्री लक्ष्मीविजयजी (विश्वचंदजी)के शिष्य हुए.
पाटण-गुजरात में पट्टपर बिराजे - सं० १९५७. वचनामृतकी वृष्टी जगह २ कर रहे हैं.
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