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तत्त्वनिर्णयप्रासादउत्तरः-चैतन्याचैतन्यकी विशेष विवक्षा न करनेसें, और द्रव्यत्वकरके अभेदबुद्धि माननेसें.
अथ अपरसंग्रहाभासका लक्षण कहते हैं:-द्रव्यत्वको एकांत तत्त्व जो मानता है, और तिसके विशेषोंको निषेध करता है, सो अपरसंग्रहाभास है. जैसें द्रव्यत्वही तत्त्व है, और धर्मादि द्रव्य नहीं है. यथा वस्तु है, परंतु सामान्यविशेषत्व कहां वर्ते हैं ? ऐसेंही सामान्यविशेषात्मक वस्तुको जानना.
अथवा संग्रहनय दो प्रकारका है. सामान्यसंग्रह (१) विशेषसंग्रह (२). सामान्यसंग्रहका उदाहरण जैसें, सर्वद्रव्य आपसमें अविरोधी है. । १ । विशेषसंग्रहका उदाहरण जैसे, जीव आपसमें अविरोधी है. । इतिसंग्रहद्रव्यार्थिकनयः।२।
अथ व्यवहारद्रव्यार्थिक नयका स्वरूप लिखते हैं:
“॥ संग्रहेण गृहीतानां गोचरीकृतानामर्थानां विधिपूर्वकमवहरणं येनाभिसंधिना क्रियते सव्यवहारइति ॥” ___ भावार्थ:-संग्रहने ग्रहण किया जो सत्त्वादि अर्थ, तिसका, विधिसें जो विवेचन करे, सो अभिप्राय विशेष, व्यवहारनामा नय है. उदाहरण जैसे, जो सत् है, सो द्रव्य है, अथवा पर्याय है. आदिशब्दसें अपरसंग्रहगृहीतार्थ व्यवहारका भी उदाहरण जानना. जैसें जो द्रव्य है, सो जीवादि षड्विध है, इति. पर्यायके दो भेद है. क्रमभावी (१) और सहभावी (२), इति. ऐसें जीव भी मुक्त (१) और संसारी (२). जे क्रमभावी पर्याय है, वे दो प्रकारके हैं. क्रियारूप (१) और अक्रियारूप (२), इति.॥
अथ व्यवहाराभास कहते हैं:-जो अपारमार्थिक द्रव्यपर्यायविभागको मानता है, सो व्यवहाराभास है. जैसें चार्वाकमत. क्योंकि, नास्तिक जीवद्रव्यादि नही मानता है. स्थूलदृष्टिसें चारभूत यावत् जितना दृष्टिगोचर आवे, उतनाही लोक मानता है. ऐसें स्वकल्पित होनेकरके झूठ होनेसें चार्वाकमत व्यवहाराभास है.
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