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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (५९) देवजी," "सीरोहीमें" (१४)जिनालय जो एकही नींव (थडा-चौतरा-पाया) ऊपर है, व. गैरहही यात्रा करते करते, श्री “आबुराज पधारे, जिनकी यात्रा करके दिलसें खुश खुश हो गये. श्रीआबुजीकी श्लाघा करनेको, जुबानमें ताकत नहीं है. जो आंखोंसे देखता है, च. कित हो जाता है. जिसके देखनेके वास्ते कई अंग्रेज विलायतसें आते हैं, और लिखते हैं कि आबुजीके मंदिर सरिखी इमारत दुनीयाभरमें भी होनी मुश्किल है. कई युरोपियन इसका फोटो (आकस ) भी उतार कर लेगये हैं, जिसकी नक्कल चिकागो धर्मसमाजके तरफसें छपेहुए पुस्तक वगैरह बहोत जगे पाई जाती है. " टॉडके राजस्पीन" ग्रंथमें इनका बहुत वर्णन है आबुजी देलवाडेके मंदिरोंकी यात्रा करके, श्रीआत्मारामजी, विश्नचंदजी वगैरह(१६) साधु श्री "अचलगढ'' की यात्रा करनेको गये. जहां बडे भारी मंदिरमें चौदांसौ चंवालीस (१४४४) मण सोनेकी चौदां (१४) मूर्तियोंके दर्शन करके आबुजीके पहाडसे उतरके श्रीआत्मारामजी “पालनपुर" पधारे. कितनेक दिन वहां ठहरके विचरते विचरते “भोयणी गाममें श्री “मल्लीनाथस्वामी" की यात्रा करके, ग्रामो ग्राम जिन मंदिरके दर्शन करते हुए, और श्रावकोंको दर्शन देते हुए, शहर " अहमदाबादमें " पधारे, श्रीआत्मारामजीका आगमन सुनकर नगरशेठ "प्रेमाभाई हिमाभाई " तथा शेठ “दलपतभाई भगुभाई " वगैरह अनुमान तीन हजार ( ३०००) श्रावक श्राविका तीन कोसपर सामने लेनेको गये. क्या आश्चर्य है? जहां अनुमान सात हजार घर श्रावकोंके, औ पांचसे जिन मंदिरहै, तहां तीन हजारका सामने जाना कुछ बडीबात नहीं है. सबने श्रीआत्मारामजीको देखतेही सार विधिपूर्वक वंदना करके बडी धामधूमसें नगरमें ले जाकर,शेठ दलपत भाईके बंगलेमें उतारे. जहां आदमीयोंके एकत्र होनेमें कुछ कसर न रही. व्याख्यान सुनकर श्रावकवर्ग लोट पोट होतेथे, केइ सखसोंके हृदयको कुलगुरुओंके उत्सूत्र वचनांधकारने वासा करके स्याम कर दियाथा, तिनको इन महात्माके वचन भास्करने दूर करके उज्ज्वल कर दिये. उत्सूत्र प्ररूपक शिरोमणि शांतिसागर जिसने शहर अहमदावादमें जैनमतसें विरुद्ध वर्णन करके एक उपद्रव खडा कर रखाथा, वह श्रीआत्मारामजीके साथ चरचा करने को तैयार होगया. श्रीआत्मारामजीने भी, शास्त्रानुसार जवाब देकर उसको निरुत्तर कर दिया. तिस दिनसें शांति सागरका जोर नरम होगया. तब शहर अहमदाबादके जैनसमुदायने श्रीआत्मारामजीका अपूर्व ज्ञान, और बुद्धिवैभव देखके बहुत प्रशंसा करी, और कहा कि महाराजजी साहिब! आपका इस वखत इस शहरमें आना ऐसा हुआहै कि, जैसें दावानलके लगे वर्षाका आगमन होवे!" अहमदाबाद थोडेही दिन रह कर श्रीआत्मारामजी वगैरह साधुओंने श्रीशनंजय तीर्थकी यात्रा करनेके वास्ते “पालीताणा शहर तरफ विहार किया, और कम करके शहर पालीताणामें पधारे. और दूसरे दिन सूर्योदयके लगभग "श्रीशजय" पर्वत पर चहे. एक तरफ तो सूर्य उदय होकर चढता जाता था, और दूसरी तरफ श्रीमहाराजजी सूर्य समान दिदार लोकोंको देते हुये क्रम उठाते चढते जाते थे; इस तीर्थका वर्णन करनेको इंद्र भी समर्थ नहीं है तो, औरोंका तो क्याही कहना है? इस तीर्थ ऊपर नव वसी(ट्रंक)याने हिस्से हैं जिनमें अनुमान (२७००) जिन मंदिर है. प्रायः संपूर्ण दिन ऐसे दर्शनामृतसें तृप्त हुये कि, न तृषा लगी, न चंदनलालजीके गुरु रुडमल्लजी, वृद्ध होनेसे दोनों (शिष्य-गुरू) उस वखत गुजरात देशमें नहीं गयेथे. तथा एक दो जने, साधपणेको छोड़ गये थे, इसवास्ते कल सोला साधु लिग्वे हैं । For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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