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पत्रिंशःस्तम्भः। "॥ स्यान्नास्त्येव सर्वमिति पर्युदासकल्पना विभजनेन द्वि
तीयो भंगः ॥२॥" “॥ स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येवेति क्रमेण सदंशासदंशक
ल्पनाविभजनेन तृतीयो भंगः ॥३॥" “॥ स्यादवक्तव्यमेवेति समसमये विधिनिषेधयोरनिर्वच
नीयकल्पनाविभजनया चतुर्थो भंगः ॥ ४॥" “॥ स्यादस्त्येव स्यादवक्तव्यमेवेति विधिप्राधान्येन युगपद्विधिनिषेधानिर्वचनीयख्यापनाकल्पनाविभजनया पं
चमो भंगः ॥५॥” “॥ स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तमेवेति निषेधप्राधान्येन युगपन्नि
षेधविध्यनिर्वचनीयकल्पनाविभजनया षष्ठो भंगः॥६॥" “॥स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येवस्यादवक्तव्यमेवेतिक्रमात् सदं
शासदंशप्राधान्यकल्पनया युगपद्विधिनिषेधानिर्वच
नीयख्यापनाकल्पनाविभजया च सप्तमो भंगः ॥७॥" अथ अर्थसें प्रथमभंग प्रगट करते हैं:-प्रथमभंग विधिकी प्रधानतामें है. 'स्यात् ' ऐसा अनेकांतका द्योतक, अर्थात् अनेकांतका प्रकाशक, अव्यय है. स्यात् इस कहनेकरके कथंचित् किसीप्रकारसें अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावरूप चतुष्टयकरके घटादिवस्तु, अस्तिरूपही है; और अन्यवस्तुसंबंधी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव चतुष्टयरूपकरके घटादिवस्तु, नास्तिरूपही है. तथाहिघट जो है, सो, द्रव्यसें पृथिवीरूपकरके तो है, जलादिरूपकरके नहीं; क्षेत्रसें पाटलिपुत्रके क्षेत्रसें है, कान्यकुब्जके क्षेत्रसे नहीं; कालसें शिशरमतुका बना हुआ है, वसंतऋतुका नहीं; भावसे रक्तरंगसें है, पीतरंगसें नही. ऐसेंही अन्यपदार्थ भी जानने. कथंचित् अर्थात् अपने द्रव्यादिचारोंकी अपेक्षाकरके, विद्यमान होनेसें, कथंचित् अस्तिरुप, घट है, और परद्रव्यादिचारोंकी अपेक्षाकरके,अविद्यमान होनेसें कथंचित् नास्तिरूप, घट है, ऐ.
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