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तत्वनिर्णयप्रासादऋ० अ० १ अ० ४ व०७।
भाष्यका भाषार्थः-हे सूर्य! तूं तरणि-तरिता है, अन्य कोइ न जासके ऐसे बडे अध्व मार्गमें जानेवाला है। तथा च स्मर्यते ॥
योजनानां सहस्र हे वे शते हे च योजने ॥
एकेन निमिषार्डेन क्रममाण नमोस्तु ते ॥ १॥ इति ॥ भाषार्थः- दो सहस्त्र दो सौ और दो (२२०२), इतने योजन सूर्य आंख मीचके खोले तिसकालसें आधे कालमें चलता है, इत्यादि । तथा ऋग्वेद अ० १ अ० ३ व०६ में लिखा है कि, सुवर्णमय रथमें बैठके जगत्को प्रकाश करता हुआ, और देखता हुआ, सूर्य आजाता है. । तथा देव दीपता हुआ सूर्य, प्रवणवत मार्गकरके जाता है, तथा उर्ध्वदेशयुक्त मार्गकरके जाता है, उदयानंतर आमध्यान्हतांइ उर्ध्व मार्ग है, तिसके उपरात आसायंकाल प्रवणमार्ग है, यह भेद है; और यजन करनेके देशमें सूर्य श्वेतवर्णके अश्वोंकरके जाता है, और दूर आकाश देशसे यहां आता है.। तथा ऋ० अ० २ अ० १ व० ५ में लिखा है. । यथा ॥ “॥सूर्योहि प्रतिदिन एकोनपट्याधिकपंचसहस्रयोजनानिमेरुं प्रादक्षिण्येन परिभ्राम्यतीत्यादि ॥”
भाषार्थः-सूर्य प्रतिदिन ५०५९ योजन मेरुको प्रदक्षिणा करके परिभ्रमण करता है. इत्यादि. । तथा ऋ० अ० २ अ० ५ व० २ में लिखा है. । यथा ॥ "॥ अचरंती अविचले द्वे एवैते द्यावापृथिव्यौ॥” इत्यादि.।
अविचल अचल अर्थात् स्थिर दोही है स्वर्ग १, और पृथिवी २, इत्यादि ऋचायोंसे सूर्यका चलना, और पृथिवीका स्थिर रहना कथन किया है. ऐसेंही यजुर्वेदादिसंहिता, और ब्राह्मणभागोंमें सूर्यके चलनेका कथन है. वैबलके हिस्से तौरेतमें भी लिखा है कि यहसुया जव लडा.
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