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तत्त्वनिर्णयप्रासाद. केवलज्ञानरूप दीपकके तेजसें जीवाजीवादितत्वोंका प्रकाश होता है; अर्थात् वो प्राणी, भावांधकार अज्ञानको दूर करके खात्मप्रकाश केवलज्ञानको प्राप्त करता है, जिसके प्रभावसे सर्व तीनलोकके चराचर पदाऑको आपही देखता है. । प्रभुके आगे धूपको प्रज्वलीत करके जो प्राणी धूपपूजा करता है, सो प्राणी धूपपूजाके प्रभावसें चंद्रमासमान अति उज्ज्वल कीर्तिकरके धवलित करा है जगत्रय जिसने, ऐसा पुरुष होता है; और फलपूजाके प्रभावसे प्राणी मोक्षके सुखफलको प्राप्त होता है. । जो प्राणी प्रभुके मंदिरमें घंट देता है, सो प्राणी तिसके फलसें घंटोंके शब्दोंकरके व्याप्त ऐसें प्रधान देवविमानोंमें सुंदर अप्सरायोंके वृंदोंमें देवतायोंके समूहसहित क्रीडा करता है. । छत्रदानकरके अर्थात् भगवान्के ऊपरि छत्र चढावनेसें प्राणी शत्रुरहित एकछत्र पृथ्वीका राज्य प्राप्त करता है; और जो भगवान्को चामर करता है, तिसके प्रभावसे उस प्राणिको राजाआदि चामर करते हैं. यहां चामर चमरीगायके केशोंका जाणना, अन्य नही. क्योंकि, भगवज्जिनसेनाचार्यने श्रीआदिपुराणमें चमरीगायके केशोंकेही चामर लिखे हैं. ___ "स्वकीर्तिनिर्मलैर्वीज्यमानं चमरिजन्मभिः॥” इतिवचनात्॥
तथा श्रीजिनेंद्रको जलादिपंचामृतकरके अभिषेक करनेके फलसें प्राणी मेरुपर्वतके ऊपरि देवता, और इंद्रादिकोंकरके भक्तिपूर्वक क्षीरसागरके जलकरके करे हुए अभिषेकको प्राप्त करता है. । भगवान्के मंदिरके ऊपरि विजयपताका (ध्वजा) चढावनेसें प्राणी संग्रामादिकोंके विषे विजयकों प्राप्त करता है, षट्खंडस्वामी-चक्रवर्ती होता है, निःप्रतिपक्ष (शत्रुरहित) होता है, और यशस्वी होता है. । बहुता क्या कहना ? तीनों लोकोंमें जो जो सुख है, सो सर्व पूजाके फलसें प्राप्त होता है; इसमें संदेह नहीं है.॥ इतिपूजाफलम्-॥
तेरापंथी दिगंबरी:-तुमने कहा सो तो सत्य है, परंतु शास्त्रोंमें जलपूजाविषे तो गंगाजल, अक्षतपूजामें मोतीके अक्षत, पुष्पपूजामें कल्पवृक्षके पुष्प, और दीपकपूजामें रत्नके दीपकादि लिखा है, सो यह
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