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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्वनिर्णयप्रासादआए? किसने पढाये? कौन पढे ? क्योंकि, धरसेनका मृत्यु ६३३ में हुआ, पुष्पदंतका मृत्यु ६६३ में हुआ, और भूतबलिका मृत्यु ६८३ में हुआ, पूर्वोक्त लेखसे सिद्ध होता है, तो फिर, चरचासमाधान बनानेवालेने श्रीवीरनिर्वाणसे ६८३ वर्षे तीनोंका मिलाप कैसें कराय दिया? और तिन दोनों भूतबलिपुष्पदंतने जेष्ठसुदि ५ को तीन सिद्धांत बनाये यह कैसे लिख दिया ? यह तो ऐसे हुआ, जैसें कोइ कहे-"मम मुखे रसना नास्ति, वा मम माता बंध्या वर्त्तते"-इसवास्तेही श्वेतांबरमतोत्पत्तिकी बावत जो लेख लिखा है,सो खकपोलकल्पित है; सत्य नही है. तथा मथुराके पुराने टीमेंसें खोदनेसें स्तंभ तथा महावीरस्वामीकी मूर्ति ऊपर शिलालेख निकले हैं, तिन लेखोंके वाचनेसें जो कल्पना दिगंबराचायौंने श्वेतांबरमतकी उत्पत्तिबाबत लिखी है, सो सर्व मिथ्या सिद्ध होती है; वे सर्व लेख आगे चलकर लिखेंगे. दिगंबरः-तत्वार्थसूत्रकी सर्वार्थसिद्धिभाषाटीकाके प्रारंभमेंही श्वेतांबरमतकी बाबत ऐसा लेख लिखा है-तथाहि-श्रीवर्द्धमान अंतिम तीर्थकरके निर्वाण भया पीछे तीन केवली तथा पांच श्रुतकेवली इस पंचमकालविषे भये, तिनमें अंतके श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामीके देवलोक गया पीछे कालदोषतें केतेइक मुनि शिथलाचारी भये, तिनका संप्रदाय चल्या, तिनमें केतेइक वर्षपछैि एकदेवर्षिगणि नामा साधु भया, तिन विचारी जो हमारा संप्रदाय तो बहुत वध्या, परंतु शिथलाचारी कहावे है, सो यह शक्ति नही, तथा आगामी हमतें भी हीनाचारी होयगे, सो ऐसा करीये जो इस शिथलाचारकू कोइ बुद्धिकल्पित न कहे. तब तिसके साधनेनिमित्त सूत्र रचना करी, चौरासी सूत्र रचे, तिनमें श्रीवर्द्धमानस्वामी और गौतमस्वामी गणधरका प्रश्नोत्तरका प्रसंग ल्याय शिथलाचारपोषणके हेतु दृष्टांतयुक्ति बनाय प्रवृत्ति करी, तिन सूत्रनिके आचारांगादि नाम धरे, तिनमें केतेइक विपरीत कथन कीये; केवली कवलाहार करे, स्त्रीकू मोक्ष होय, स्त्री तीर्थंकर भया, परीग्रहसहितकू मोक्ष होय, साधु उपकरण वस्त्र पात्र आदि चौदह राषे, तथा रोगग्लान आदि वेदनाकरी For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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