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तत्त्वनिर्णयप्रासादतथा “बहुरि ताकै पीछे तथा श्रीवीरनाथकू मुक्ति हुवां पीछे च्यारसैं बाण ( ४९२) वर्ष गये दूसरा भद्रबाहु नामा आचार्य भया, याका वर्त्तमान कालका वर्ष तेईस (२३) का हैं." ऐसे प्रथम लिखा है. पीछे "विक्रम राजकू राज्यपदस्थके दिनतें संवत् केवल ४ के चैत्रशुक्ल १४ चतुर्दशीदिने श्रीभद्रबाहुआचार्य भये" ऐसें लिखा है, सो भी पूर्वापरविरोधवाला है. इसकी गिणती पूर्वे लिख आए हैं.
पूर्वोक्त पट्टावलिमेंही "बहुरि ताके पी तथा श्रीवीरस्वामीपीछे पांचवें पंदरह (५१५) वर्ष गये लोहाचार्य भये ताका वर्तमान काल पच्चास (५०) वर्षका है"-ऐसें लिखके फिर लिखा है कि-"श्रीवर्द्धमानस्वामीको मुक्ति हुये पांचवें पैंसठि (५६५) वर्ष गयें अर्हद्दलिआचार्य भये ताका वर्तमान काल वर्ष अष्टाविंशति (२८) का है" प्रथम ऐसें लिखके फिर आगे जाके भद्रबाहुस्वामीसें पाटानुक्रम लिखा है, तिसमें ऐसें लिखा है, "बहुरि ताके पीछे संवत् केवल छहवीस (२६) का फाल्गुनशुक्ल १४ दिनमें गुप्तगुप्तिनामा आचार्य जातिपरवार भये" यह लेख भी विरोधी है, क्योंकि, प्रथमके लेखमें भद्रबाहुके पीछे लोहाचार्य, और पीछे अर्हद्वलिको कथन करा; और पिछले लेखमें भद्रबाहुके पीछेही अर्हद्दलिको कथन करा.-गुप्तगुप्तिकाही नाम अर्हद्दलि है, विशाखाचार्य भी इसहीका नाम है.-तथा पूर्वोक्त लेखमें अर्हदलिको श्रीवीरनिर्वाणसे ५६५ में पट्टपर हुआ लिखा है, और पिछले लेखसें श्रीवीरनिर्वाणसे ५२० वर्षे अर्हदलिपट्टऊपर हुआ सिद्ध होता है. __तथा प्रश्नचरचा समाधानमें लिखा है कि “महावीर भगवान्के नि
र्वाणपीछे संवत् ६८३ वर्षे धरसेनमुनि गिरनारकी गुफामें बैठे थे, तिस कालमें ग्यारां (११) अंग विच्छेद गये थे" यह लेख विक्रमप्रबंध, और पूर्वोक्त मूलसंघकी पट्टावलिसें विरोधी है. क्योंकि, पट्टावलिमें ऐसे लिखा है “बहुरि ताकै पीछे तथा श्रीसन्मतिनाथ ( महावीर ) पीछे छहसे चउदह (६१४) वर्ष गयें धरसेनाचार्य भये, ताका वर्तमान वर्ष इकईसका है” तथा पूर्वोक्त पावलिमेंही भूतबलि आचार्यतक एक अंगके धारी मुनि लिखे हैं, सो आगे लिख दिखावेंगे.
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