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तत्वनिर्णयप्रासादवासनागुरुसामग्री विभवो देहपाटवम्॥ संघश्चतुर्विधो हर्षो व्रतारोपे गवेष्यते ॥१॥ वरकुसुमगंधअक्खयफलजलनेवजधूवदीवहिं॥
अविहकम्ममहणी जिणपूआ अहहा होइ ॥२॥ इत्याचार्यश्रीवर्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धपंचदशमवतारोपसंस्कारस्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचितोबालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समाप्तोयं त्रिंशः स्तंभः ॥ ३०॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरविरचितेतत्वनिर्णयप्रासादग्रंथेपंचदशमवतारोपसंस्कारवर्णनोनामत्रिंशःस्तंभः ॥ ३०॥
॥ अथैकत्रिंशस्तम्भारम्भः॥ पूर्वोक्त २७।२८।२९।३०। स्तंभोंमें पंचदशम (१५) व्रतारोपसंस्कारका वर्णन किया, अब इस इकतीस (३१) स्तंभमें षोडशम (१६) अंत्यसंस्कारका वर्णन करते हैं. ॥
श्रावक यथावृत् वृत्तोंकरके निज भवको पालके कालधर्मके प्राप्त हुए, उत्कृष्ट प्रधान आराधना करे, तिसका विधि यह है.। जिन अरिहंतोंके कल्याणक स्थानों में निर्जीव शचि पवित्र स्थंडिल-जगामें, वा अरण्यमें, वा अपने घरमें, विधिसे अनशन करना.। तहां शुभस्थानमें ग्लानकोपर्यंत आराधना करावनी । तथा अवश्यमेव अमुकवेला निकट मरण होवेगा ऐसें ज्ञानके हुए, तिथिवारनक्षत्रचंद्रबलादि न देखना। तहां संघका मीलना करना । गुरु, ग्लानको जैसें सम्यक्त्वारोपणमें तैसेंही नंदि करे.। नवरं इतना विशेष है. सर्व नंदि देववंदन कायोत्सर्गादि पूर्वोक्त विधि 'संलेहणा आराहणा' इस अभिलापकरके करावणा. और वैयावृत्त्य कर कायोत्सर्गानंतर।
“॥ आराधना देवता आराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं अन्नथ्थउससिएणं० जाव-अप्पाणं वोसिरामि॥” कहके कायोत्सर्ग करे. कायोत्सर्गमें चार लोगस्स चितवन करना, पारके आराधना स्तुति कहनी. ।
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