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યુદ્ધ
तत्त्वनिर्णयप्रासाद
॥ अनुष्टुप् ॥
अस्तांहः सिंहसंयुक्तरथ विक्रममंदिर ॥ सिंहिकासुत पूजायामत्र संनिहितो भव ॥ १ ॥ " ॥ ॐ राहो इह० शेषं पूर्ववत् ॥ " इति राहु पूजनम् ॥ ४ ॥
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॥ वृत्तम् ॥
फलिनीदलनील लीलयांतःस्थगित समस्तवरिष्ठविघ्नजात ॥ रवितनय प्रबोधमेतत् जिनपूजाकरणैकसावधानान् ॥ १ ॥ “ ॥ ॐ शने इह० शेषं पूर्ववत् ॥ " इति शनिपूजनम् ॥ ५ ॥ ॥ द्रुतविलंबितपाठः ॥
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अमृतवृष्टिविनाशित सर्वोपचितविघ्नविषः शशलांछनः ॥ वितनुतात्तनुतामिह देहिनां प्रसृततापभरस्य जिनाचने ॥ १ ॥ ॥ ॐ चंद्र इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति चंद्रपूजनम् ॥ ६ ॥
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॥ वृत्तम् ॥
बुधविबुधगणाच्चितांत्रियुग्म प्रमथितदैत्य विनीतदृष्टशास्त्र ॥ जिनचरणसमीपगोधुनात्वं रचय मतिं भवघातन प्रकृष्टाम् ॥१॥ “ ॥ ॐ बुध इह० शेषं पूर्ववत् ॥ " इति बुधपूजनम् ॥ ७ ॥
॥ वृत्तम् ॥
सुरपतिहृदयावतीर्णमंत्र प्रचुरकलाविकलप्रकाश भास्वन् ॥ निपचिणाभिषेककाले कुरु बृहतीवर विघ्नविप्रणाशम् ॥ १॥ “ ॥ ॐ गुरो इह० शेषं पूर्ववत् ॥ " इति गुरुपूजनम् ॥ ८ ॥ ॥ द्रुतविलंबित ॥ निजनिजोदययोगजगत्रयीकुशलविस्तरकारणतां गतः ॥ भवतुकेतुरनश्वरसंपदां सतत हेतुरवारितविक्रमः ॥ १ ॥ “ ॥ ॐ केतो इह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति केतुपूजनम् ॥ ९ ॥
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