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तत्त्वनिर्णयप्रासाद करना. तीनों संध्यामें विधिसें देवयूजन करणा. पार्श्वस्थादिवंदनका परिहार करना. शंकादि पांच अतिचारोंका त्याग करना. राजाभियोगादि छ (६) कारणोंसें भी यह दर्शन प्रतिमा नही त्यागनी.॥इतिदर्शनप्रतिमा.१। ___ अथ दूसरी व्रतप्रतिमा, सा, मास दोतक यावत् निरतिचार पांच अणुव्रत पालनविषया, गुणव्रत ३, शिक्षाबत ४, इनका पालना भी साथही जानना. अर्थात् दो मासपर्यंत निरतिचार द्वादश (१२) व्रतोंका पालना. यहां नंदिक्षमाश्रमणादि तिसतिस प्रतिमाके अभिलापसे पूर्ववत् । प्रत्याख्यान नियमचर्यादि सर्व तैसेंही जानने. दंडक भी तिसके अभिलापसे सोही जानना. ॥ इतिव्रतप्रतिमा ॥२॥
अथ तीसरी सामायिक प्रतिमा, सा, तीन मासतक उभयसंध्यामें सामायिक करनेसें होती है. शेष नंदिीनयम ब्रतादिविधि सोइ अर्थात् पूर्वोक्तही जानना. और दंडक सामायिकके अभिलापसे कहना. ॥ इतिसामायिकप्रतिमा ॥३॥ ___ अथ चौथी पौषधप्रतिमा, सा, चार मास यावत् अष्टमी चौदशको चार प्रकारके आहारके त्यागमें रक्तको चार प्रकारके पौषधके करनेसे होवे है. द्रव्यादिभेदसें दो आदि मासपर्यंत इस कथनसे यथाशक्ति सूचन किइ गइ. यहां नंदिव्रत नियमादिविधि सोही सोही और दंडक तिसके (पौषधप्रतिमाके) अभिलापसे कहना.॥ इतिपौषधप्रतिमा ॥४॥
ऐसें पांचमासादिकालवालीयां शेषप्रतिभायोंमें भी यही पूर्वोक्त विधि है. नंदिक्षमाश्रमण दंडकादि तिसतिस प्रतिमाके अभिलापसें. व्रतचर्या सोही है, परं संप्रतिकालमें, पर्यायसें, वा संहननकी शिथिलतासें, पांचमी प्रतिमासें लेके इग्यारहमीतांइ प्रतिमाके अनुष्ठानका विधि शास्त्रोंमें नहीं दीखता है. प्रतिमाका आरंभ शुभ मुहूर्त में करना. ॥ इतिव्रतारोपसंस्कारे देशविरतिसामायिकारोपणविधिः ॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्वनिर्णयप्रासादे पंचदश तारोपसंस्कारांतर्गतदेशविरतिसामायिकारोपणधिवर्णनो
नामाष्टाविंशः स्तम्भः ॥ २८॥
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