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तत्त्वनिर्णयप्रासादअंगऊपर धारण करूं. इतने मात्र गीत, नृत्य, वाजंत्र, मुझको उपभोगवास्ते कल्पे. । ३५॥ इतिसप्तमव्रतम् ॥ ..
वैरिका घात वैर लेना इत्यादिक आर्त रौद्र ध्यान अदाक्षिण्यताविषे पापोपदेशका देना, इनको वर्जु. । ३६ । अदाक्षिण्यताविषे हिंसाकारी गृहोपकरणादि देना तथा कामशास्त्रका पढना, जूया खेलना, मद्य पीना, इनको परिहलं. । ३७। हिंडोलेका विनोद, भक्त (भोजन), स्त्री, देश,
और राजा, इनकी स्तुति, वा निंदा; पशु पक्षीका युद्ध, अकालमें नींद लेनी, संपूर्ण रात्रिमें सोना, ।३८ । इत्यादि प्रमादस्थानक, अनदंडनामक गुण व्रत में वर्जु. । इत्यष्टमत्रतम् ॥
एक वर्षमें इतने सामायिक करूं. । इतिनवमवतम् ॥
इतने योजन मेरेको दिन, वा रात्रिमें दशोदिशायोंमें जाना कल्पे. । इतिदशमवतम्।
एक वर्षमें इतने पौषध करूं. । इत्येकादशत्रतम् ॥
साधुयोंको संविभाग भोजन वस्त्र आदिकसे करूं. । ४० । प्रथम यतिको देके और नमस्कार करके पीछे आप पारणा करूं; जेकर सुविहित साधुयोंका योग न होवे तो, दिशावलोकन करके भोजन करूं. ॥४१॥ इतिद्वादशव्रतम् ॥
यह द्वादश व्रतरूप श्रावकधर्म, पूर्वोक्त विधिसें पालुं, विना छाण्या जलका पान और स्नान, मरणांतमें भी न करूं. । ४२ । कंदर्प, दर्प, थूकना, सोना, चार प्रकारका आहार करना, विकथा, कलह, इत्यादि जिनमंडपमें वर्जु. । ४३। __ अमुक महागच्छमें, अमुक गुरु सृरिके संतानमें,अमुकके शिष्यके पास, अमुक सूरिके पादांतमें। ४४।अमुक संवत्सरमें, अमुक मासमें, अमुक पक्षमें, अमुक तिथिमें, अमुक वारमें, अमुक नक्षत्रमें, अमुक नगरमें। ४५। अमुकका पुत्र, अमुक नामका श्रावक, यहां गृहस्थधर्म ग्रहण करता है. अमुककी पुत्री, अमुककी भार्या, अमुक नामकी श्राविका, वा व्रत ग्रहण करती है. । ४६ ।
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