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तत्त्वनिर्णयप्रासादकुलकरस्थापनानतर, नित्य कुलकरकी पूजा करनी.। विसर्जनकालमें कुलकरोंका पूजन करके, गुरु पूर्ववत् “ॐ अमुककुलकराय” इत्यादि संपूर्णमंत्र पढके “ पुनरागमनाय स्वाहा” ऐसें सर्वकुलकरोंको विसर्जन करे. ॥ पीछे यह पढे. ___" आज्ञाहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यत्कृतं ॥
तत्सर्वं कृपया देव क्षमस्व परमेश्वर ॥१॥" इतिकुलकरविसर्जनविधिः॥
तदपीछे मंडलीपूजा, गुरुपूजा, वासक्षेपादि पूर्ववत्. । साधूओंको वस्त्र पात्र देना । ज्ञानपूजा करणी. । ब्राह्मणोंको, बंदिजनोंको, अपर मागने. वालोंको, यथासंपत्तिसें दान करणा.।
तथा देशकुलसमयांतरमें विवाहलग्नके प्राप्त हुए, वरको स्वसुरके घरको प्राप्त हुए, षट् (६) आचार करते हैं. प्रथम अंगणमें आसन देना. । स्वसुर कहे “ विष्टरं प्रतिगृहाण " तब वर कहे “ॐ प्रतिगृह्णामि" ऐसें कहके आसन ऊपर बैठे । १ । पीछे स्वसुर वरके पग प्रक्षालन करे । २। पीछे दाह चंदन अक्षत दूर्वा कुश पुष्प स्वेतसरसों और जलकरके स्वसुर जमाइको अर्घ देवे । ३ । पीछे आचमन देवे । ४ । पीछे गंधअक्षतसे तिलक करे । ५ । पीछे वरको मधुपर्क प्राशन करावे । ६ । पीछे गृहके अंदर वधूवरका परस्पर दृष्टिसंयोग, और परस्पर दोनोंका नामग्रहण, शेषं पूर्ववत् ॥ इत्याचार्यश्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्यगृहिधर्मप्रतिबद्धविवाहसंस्कारकीर्तननामचतुर्दशोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिकृतोबालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौचसमाप्तोयंषविंशःस्तंभः ॥ १४ ॥ .इत्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिविरचितेतत्त्वनिर्णयप्रासादग्रन्थचतुर्द
शविवाहसंस्कारवर्णनोनामषड्विंशःस्तम्भः ॥ २६ ॥
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