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तत्त्वनिर्णयप्रासाददिमः कुशलः आदिमो वैज्ञानिकः आदिमः सेव्यः आदिमोगम्यः आदिमो विमृश्यः आदिमो विस्रष्टा सुरासुरनरोरगप्रणतः प्राप्तविमलकेवलो यो गीयते सकलप्राणिगणहितो दयालुरपरापेक्षापरात्मा परंज्योतिः परं ब्रह्मा परमैश्वर्यभाक् परंपरः परापरो जगदुत्तमः सर्वगः सर्ववित् सर्वजित् सर्वीयः सर्वप्रशस्यः सर्ववंद्यः सर्वपूज्यः सर्वात्माऽसंसारोऽव्ययोऽवार्यवीर्यः श्रीसंश्रयः श्रेयः संश्रयः विश्वावश्यायहृत् संशयहत् विश्वसारो निरंजनो निर्ममो निःकलंको निःपाप्मा निःपण्यः निर्मना निर्वाचा निर्देहो निःसंशयो निराधारो निरवधिःप्रमाणं प्रमेयं प्रमाता जीवाजीवाश्रवबंधसंवरनिर्जराबंधमोक्षप्रकाशकः स एव भगवान् शान्तिं करोतु तुष्टिं करोतु पुष्टिं करोतु ऋद्धिं करोतु वृद्धि करोतु सुखं करोतु सौख्यं करोतु श्रियं करोतु लक्ष्मी करोतु अर्ह ॐ॥” ऐसें आर्यवेदके पाठी ब्राह्मण, आगे चलें.। तदपीछे इसी विधिसें महोत्सवकरके, चैत्यपरिपाटी, गुरुवंदन, मंडलीपूजन, नगरदेवतादिपूजन करके, नगरके समीप रहे; पीछे पंथमें चलें.। तथा इसीरीतिसें कन्याधिष्ठित नगरमें प्रवेश करना. । तिसही नगरमें विवाहकेवास्ते चले हुए वरका भी, यही विधि जाणना.। तथा नित्यस्नानके अनंतर कौसुंभसूत्रकरके वधूवरके शरीरका माप करना.। तदपीछे विवाहदिनके आये हुए, विवाहलग्नसे पहिले, तिसही नगरका वासी, वा अन्यदेशसे आया वर, तिसही पूर्वोक्त विधिसें, पाणिग्रहणकेवास्ते चले. तिसकी बहिनां विशेषकरके लूणआदि उत्तारण करे. । पीछे वर, आडंबर और गृह्यगुरुसाहित कन्याके घरके द्वारमें आवे. तहां खडे हुए वरको, तिसके सासुजन,कर्पूसदीपकादिकरके आरात्रिक (आरति) करे.। तदपीछे अन्य स्त्री, जलते हुए अंगारे, और लवणकरके संयुक्त, त्रड त्रड ऐसे शब्द करते हुए,
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