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षड्विंशस्तम्भः। अंशमें, शुभ ग्रहोंकर दृष्ट हुए, पाणिग्रहण शुभ है. ॥ इत्यादि श्रीभद्रबाहु, वराह, गर्भ, लल्ल, पृथुयशः, श्रीपति, विरचितविवाहशास्त्रके अवलोकनसें शुभ लग्न देखके विवाहका आरंभ करना. ॥
श्लोकः॥ ततश्च कुलदेशादि गुरुवाक्यविशेषतः॥ अनुज्ञातं विवाहादि गग्र्गादिमुनिभिः पुरा ॥ १॥
वृत्तम् ॥ सूर्यः षट् त्रिदशस्थितस्त्रिदशषट्सप्ताद्यगश्चंद्रमा जीवः सप्तनवद्विपंचमगतो वक्रार्कजौ पब्रिगौ ॥ सौम्यः पहिचतुर्दशाष्टमगतः सर्वेप्युपांते शुभाः शुक्रः सप्तमषट्दशाष्टरहितः शार्दूलवत्रासकृत् ॥ १॥" स्त्रीयोंको बृहस्पति बलवान् होवे, पुरुषोंको सूर्य बलवान् होवे, और दंपतीको चंद्र बलवान् होवे तो, लग्न शोधना.॥
प्रथम कन्यादानविधि कहते हैं:-पूर्वोक्त समान कुलशीलवाले, अन्य गोत्रीसें कन्या मांगनी. । पूर्वोक्त गुणविशिष्ट वरकेतांइ कन्या देनी. । कन्याके कुलज्येष्ठने वरके कुलज्येष्ठको, नालिकेर, क्रमुक (सुपारी) जिनोपवीत, व्रीही, दूर्वा, हरिद्रा अपने २ देशकुलोचित वस्तु दानपूर्वक कन्यादान करना. तदा गृह्यगुरु वेदमंत्र पढे । स यथा ॥ “॥ ॐ अहूँ परमसौभाग्याय परमसुखाय परमभोगाय परमधाय परमयशसे, परमसन्तानाय भोगोपभोगांतरायव्यवच्छेदाय इमां अमुकनाम्नी कन्यां अमुकगोत्रां अमुकनाम्ने वराय अमुकगोत्राय ददाति गृहाण « ॐ ॥” पीछे सर्व लोकोंकेतांड कन्याके पक्षी तांबूल देवे. । तथा दूर रहे विवाहकालमें वरके जीत हुए, सा कन्या अन्यको न देनी.
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